________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandie डांगव शुं बोले छे. 13 डांगवउवाच // डांगव बोलतो हवो; ॥श्लोक॥ धिग्कुलंचंद्रजभूपाधिग्धर्मों धिग्बहुशताब्रह्महत्याभवेत्तेषांयुद्धकुर्वतिकातरं // 14 // टीका-चंद्रवंशना कुळने विषे उत्पन्न थयेलाने धिक् छे, तेमना धर्म नियमने पण धिक्छे, तेमना सर्वज्ञपणाने धिक् छे,शर्ण श्रावेलाने शणे न राखेतो ब्रह्महत्या होय तेम जाणेछेतथापिनथी राखता.१४ ॥श्लोक।इत्येवमुक्त्वावचनंगतोगंगातटेनृपः॥स्वदेह त्यागमश्वन्यामनसाधारणां दधौ // 15 // टीका-एवां बचन संभळावीने ते डांगव राजा पोतानो देह अश्वनि सुद्धा त्याग करवो धारिने गंगाना तृट प्रत्ये गति करे छे. 15 ॥श्लोक।गंगातीरसुखांसिनाऋषयोवेदपारगा केचिध्यानेनसहितामुनयोदिप्त तेजस // 16 // टीकान्ते गंगा तृटना किनाराउपर वेद वेदांगनोपारपामेला ऋषियो, सुंदीर तेजस्वी केटलायेक हरिनुं ध्यान धरे छे. 16 ॥श्लोक॥ तत्रगत्वाचतान्सन्निनामदंडवद्भवि // मुनयोमांमहासिद्धारक्ष्यांकुर्वत संस्थित H // 17 // टीका-तेमना समीप डांगव जइने दंडव्रत करे छे ने केहेछे के, हे तपस्वीयो, हे सिद्धो माहारुं रक्षण करो. 17 // श्लोक // डांगवस्यवचःश्रुत्वाअब्रुवन्ऋषयोवचः॥वयंतंचभजिष्यामोकस्माछ For Private and Personal Use Only