________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥वैशंपायनउवाच॥ वैशंपायन रुषि जन्मेजय प्रत्ये बोलता हवा;॥श्लोक।। प्राप्तोदुःखंचसंतापंहदिक्रष्णभयान्वित : शरणार्थं गतोराजापातालेडांगवोनृप // 1 // टीका-हे जन्मेजय,क्रष्णना नयवडे करीने पाकुळ व्याकुळ एवो ने हृदयने विशे दुःख संताप पामेलो एवो जे डांगव राजा तेतो पाताळने विशे जतो हवो. 1 ॥श्लोक॥ यत्रनागानागणीभिरमंतिकांचनप्रनाः शेषकर्कोटकोपौमहापद्मश्च ! वासकिः // 2 // टीका-जे ठेकाणे तमाम नागलोक वसे छे, अने कांचन सरखी छे / प्रभाकांति ते जेनी एवा शेषनाग, कर्कोटक, पद्मनाग, महा पद्मनाग, अने वासुकी, ए सर्वे रमण करे छे. 2 ॥श्लोक॥ तक्षकोधृतराष्टश्चपुंडरीकोऽथवामन : एतेचान्येचबहवोनागाःसहस्र काननाः॥३॥ टीका-एटलाज नहीं पण तक्षक, ध्रतराष्ट्रक, पुंडरिक, वामन एथकी बिजा घणा जेने हजार छे फेणाओ एवा एवा शोभायमीन देखाय छे. 3 ॥श्लोक। नमस्कारंद्विजीहवानांक्रतवान्भयविव्हल : // व्वाचडांगवोराजाशेषं प्रतिमहाबलः // 4 // टीका-बे छे जिव्हात्रो ते जेने एवो अने अतिशय छे बळ ते | जेमां एवो जे शेष ते प्रत्ये क्रष्णना भयवडे करीने विहवळ छे मन ते जनुं एवो जे| || डांगव ते नमस्कार करीने बोलतो हवो. 4 For Private and Personal Use Only