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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डॉगवउवाच॥ डॉगव बोलतो हवो ॥श्लोकसहस्राननदेवेशपाहिपाहि . 19 जगद्गुरो श्रीकृष्णानयमापन्नोऽश्वनीमेगृह्यतेबलात्॥५॥ टीका-हे देवना इश, हे श- 5 हस्रानन, हे जगद्गुरो भारु रक्षण करो, माझं रक्षण करो श्रीक्रष्णथकी नय ढुं पामेलोछु मारी जे अश्वती तेने बलात्कारवडे लइ जवा इच्छेछे. 5 श्लोक॥ तस्यतद्वचनं श्रुत्वावाचासौनागसत्तम : सर्वेषांशृण्वतांवाक्यंशेषोविष्णु प्रियोन्प॥६॥ टीका-एवां वचन डांगवराजानां शेषनाग सांभळीने सर्व सभाना मध्ये बोले छे, हे राजन् तुं सांभळ, मनेतो ए ऋष्ण घणा वाहाला छे. 6 शेषनागउवाच॥ शेषनाग फरीने शुं बोले छे;॥श्लोक॥ शृणुराजनवचोयोऽ स्माकंचहरिवल्लभ : तस्यवैरीनवान्प्राप्तोनदेयंशरणंतव // 7 // टीका- हे राजा तुं वळी फरीने सांभळ्य हुं तने कढुंछु, के मने हरी जे क्रष्ण ते तो घणा वाहाला छे, तेनो वैरी तुं प्राप्त थयो छे माटे तने कोइ शर्णे नहीं राखे. 7 लोक॥ त्रिलोकेकोनदृश्यतेक्रष्णेनसहयुध्यति जगन्मातापिताक्रष्णःक्रष्णा दन्यन्नविद्यते // 8 // टीका-एटलुंज नहीं पण त्रयणेलोकने विशे क्रष्णनी साथे युद्ध करनार द्वं जोतो नथी अने ए ऋष्णतो जगतना माता पिता रूपछे, कृष्णथी अन्य बळवान बिजो कोश नथी. For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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