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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सागरावधि // 2 // टीका-कोइ कालांतरे सर्व तिर्थनी यावायो करवानो निश्चय करीने पुष्करजिने आये लइने सागरा वधी यात्राओ करी. 2 ॥श्लोक। परिभ्रमन्कदाकालेबदर्याश्रममागतः। गंगातीरसुखासिनोरम्यंपश्यन् वनंतदा // 3 // टीका-एम फरतां फरतां पर्यटन करता सता बदरी याश्रमने पाम्या अंने ते स्थलनेविशे सुंदिर एवं गंगानु तिर जोइने तप करवानो निश्चय करेछे. 3 ॥श्लोक॥ सिंहव्याघ्रसमाकीर्ण।महीशैःशशकैर्टकै : नानापक्षिसमाकीर्णनाना फलसमन्वितं // 4 // टीका-अने वलि ए तट केवं छे के, सीह अने व्याघ्र करीने समाकिर्ण एवं अनेनाना प्रकारना महिष,ससला,टक,अने नाना प्रकारना पक्षियो अने नाना प्रकारना क्षो फले सहवर्तमान शोभि रह्या छे.४ लोकचंपकागरुपुन्नागदाढमीबकुलान्वितं द्राक्षपुंगीनालिकेरजांबुफलसमन्वितं // 5 // अने वळि टक्षो केवां केवां फळि रह्यांछे के, चंपा, अगर, पुन्नाग, डाडीम, बकुलना रक्षो, तदनंतर, द्राक्ष, सोपारी, नाळिएर, जांबु तेणे सहवर्तमान, विंटायलं वन शोभे छे. 5 लोक॥ सदापुष्पंतियेरक्षाःफलंतिचसदाफलै : संगितंचप्रकुर्वतिकोकीलामत्त षट्पदाः // 6 // टीका-अने वळि सदाकाळ ए रक्षो फळ्या करे छे, अने ते रक्षो उपर For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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