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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandie पार पडशे, कारण के केवी गत थशे. // 7 ॥श्लोक // इत्येवंकथितंबाक्यंश्रीकृष्णेनमहात्मना // प्रोवाचसहदेवश्वसंगरे स्थितान्नुपान्॥८॥ टिका- महात्मा एवा जे श्रीकृष्ण तेमणे सहदेव प्रति ए रीते | वाक्य का, ते सांभळतां सर्व राज्य मंडळना समिप उना रहीने सहदेवजी बोलेछे. सहदेवउवाच॥हवे सहदेवजी शुं बोलता हवा, ॥श्लोक॥ श्रणुतांदेवकीपूत्रबहू नारोनवेद्भविपतंतोगंबरादेतेरसातलगतामही॥९॥ टीका. हे देवकीना पूत्र भग | वान तमे सांनळो, आसमय पृथ्वी पर अनितीरुपि भार बह वधी गयोछे, मा टे करीने जो ए त्रयणे वजो जो आकाशथी नीचे पडशे तो, पृथ्वी रसाताळ जती रदेशे. 9 ॥श्लोक॥ तेषांभारसहोभीमोनान्योस्तिपुरुषोनवी॥अस्याप्रष्टोवत्रंचबहिभीम जनार्दन // 10 // टिका. माटे करीने ए त्रयणे वचनो भार भिम विना बिजो पुरुषकोइ सहन करे एवं नथी, कारण के निमर्नु अरधु अंग पण वज, माटे करीने हे कृष्ण भिमने कोइ राजी करीने संनळावो. ___ श्लोक॥श्रणुराजन्प्रवक्ष्यामि जन्मेजयमहायशाःसप्तार्धवजसंयोगोजातोस्मिन् / शापकारणे // 11 // टिका. हे महा यशश्वी जन्मजय तुं सांनळ्य,हुं तने संभळावू / For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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