SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तमाक्षिपत् // 13 // टीका-डांगवनी सभा मध्ये गयो एवो जे सेवक तेतो स्वस्थ चित्तिवडे करीने राजाने नमस्कार करतोथको पत्र अर्पण करे छे. 13 ॥श्लोक॥ गृहित्वापत्र राजावंचतिसभ्यसन्निधौ काश्यांत्वंडांगवोराजाराज्यं / कुरुयथेप्सितं // 14 // टीका-ते राजा पत्र लेइने पोतानी सभामां वांचे छे, तेमां लख्युं छे के काशिमां तुं डांगव राजा सुखेथी राज्य कस्य. 14 ॥श्लोक // तवगेहेतुरगीयद्वारकांप्रतियोजय // नदद्यात्तुर्गीयाक्तसंनद्धोरंगरे / भव ॥१॥ीका-परंतु ताहारे घेर जे घोडी छे ते तुं, द्वारकामा मोकल्य,जो कदापी | नहीं मोकले तो तारी साथे संग्राम थशे. 15 ॥श्लोक॥ प्रथिव्यांशरणंकोपिनरक्षेतमहाबल : देवोवादानवोराजाराक्षसोधरपीधरः 16 // टीका-अने मारीसाथे तुं लडीश तो एथ्विमां तने कोइ देव,दानव, राजा, राक्षस, धरणीधर जे शेषनाग तेपण तले शर्णे नहीं राखे. 16 ॥श्लोकशीघ्रत्वंतुरगीदेहिसेवकस्यनिरंतरंपत्रस्यवंचनाद्राजाबहुतापेनपीडितः // 17 // टीका-माटे करीने उतावला पत्र वाचतांज आ दुतनी साथे घोडी मोकल, एवां वचन वांचतांज डांगवराजा तेतो तापवडे करीने पिडा जाय छे. 17 ॥श्लोक। प्रोवाचससभामध्येक्रष्णस्यसेवकंप्रति ॥हदिसदुःखमापन्नोमुखेकेसरि For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy