________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir क्षणात् // 20 // टीका-हे जन्मेजय राजा, नेत्रेद्रिय क्रोधयुक्त थइ सति मुनिने कहे छे के, नूमिमां तमारो संग पामीने सारासारा पदार्थो कोइ दिवस दिठा नथी, कारण के तमे निरंतर अमने विचिने चालोछो. 20 ॥श्लोक॥ श्रवणेंद्रियंवचःप्राहक्रोधेनजन्मेजय // कथानानारसक्वापिनश्रूतस्तव संगतः // 21 // टीका-तदनंत्तर जन्मेजय क्रोधवडे करीने श्रवणेंद्रि केहेवा.लागी के नाना प्रकारनां उच्छाहपुर रस वचन मेंय पण सांभळ्यां नहीं. 21 ॥श्लोक // मनेंद्रिचतदावाक्यमुनिप्रोवाचरोषत : वैभवोनैवसंसर्गात्तवदृष्टोमया कदा // 22 // टीका-अने वळि क्रोधवडे करीने मनेंद्रि कहछे के तमने पामीने को दिवस सारासारा वैनव भोगव्या नहीं. 22 ॥श्लोक॥ अनुझादहिभोयोगिन्सर्वाःप्रोचर्मनीश्वरं // पश्चात्प्रोवाचदुर्वासावाक्य मेतन्नरोत्तम // 23 // टीका--माटे करीने सर्वे ईंद्रिओ मळीने कहे छे क, हे मुनिश्वर हवे अमने आझा आपो, एम सांभलिने हे नरोत्तम, हे जन्मेजय दुर्वासा मुनी | से इंद्रिओने समजावे छे. 23 ॥श्लोक॥ ॥दुर्वासाउवाच॥ चत्वारिचेंद्रियाणीहभोगान्पश्यंतुनाकत : मनेंद्रितव / / संसर्गोममापिशरिरेनदि // 24 // टीका-दुर्वासा बोलता हवा; हे मनेंद्रि विनानी || For Private and Personal Use Only