Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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गाँव तक सीमित रह जाते । इस अपूर्व जैन जैन धर्म,अध्यात्म, सिद्धान्त, दर्शन, साहित्य
और संस्कृति रूपी अमूल्य धरोहर के महत्त्व और ज्ञान प्रकाश से सदा के लिए वंचित रह जाते । इन सबकी पहचान कराने और महत्त्व को समझाने में इन विद्यालयों एवं गुरुजनों का महान योगदान है। अतः गुरुजनों के आदेशानुसार समाज के बीच जाकर कुछ सेवा करने का निश्चय किया । पं० जी हमेशा उत्साहवर्धन करते रहते थे। एक बार चर्चा के दौरान मुझसे कहा कि तुम्हारे नाम के अनुसार तुम पर दुहरी जुम्मेदारी है तुम्हें नामानुसार पं० फूलचन्द जी एवं पं० नाथू राम प्रेमी की परम्परा और नाम को कायम रखना है । ऐसा सुनते ही मैं लज्जा से झुक गया क्योंकि अपने अन्दर कितनी कमी है, मैं स्वयं जानता हूँ, मैं तो भ० जिनेन्द्र देव से सदा यही प्रार्थना करता हूँ कि इन गरिमा मंडित विद्वानों के शतांश बराबर भी कार्य कर सके तो अपने जीवन को कृतार्थ मानंगा ।
सन् १९८० दिल्ली में जब पं० जी का सार्वजनिक भव्य अभिनन्दन समारोह मनाया गया, उस शुभ अवसर पर मैं भी सपरिवार इसमें सम्मलित हुआ था। इस समारोह के अन्तर्गत आयोजित संगोष्ठी में सैकड़ों विद्वानों ने शोध-निबंध प्रस्तुत किये थे। विद्वत् परम्परा के अनुरूप यह एक अद्वितीय अभिनन्दन समारोह था।
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में महावीर जयन्ती तथा अन्य संगोष्ठियों में जब भी मैंने पं० जी से बोलने हेतु अनुरोध किया, तब उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। इन अवसरों पर उनके अनेक ओजस्वी भाषण हये। जिनमें उन्होंने जैन साहित्य और इतिहास की प्राचीनता तथा जैन धर्म के सिद्धान्तों को, जिस प्रभावक शैली में प्रस्तुत किया उससे अनेक बड़े-बड़े वैदिक-अवैदिक विद्वान् अत्यन्त प्रभावित हुये और जैन धर्म तथा संस्कृति की महत्ता को स्वीकार किया।
पूज्य पं० जी एक वर्ष से अधिक समय तक अस्वस्थ रहे फिर भी देव दर्शन सामायिक एवं लेखन आदि दैनिक कार्य नियमित चलते रहते थे। अधिक अस्वस्थ होने पर उनकी स्मरणशक्ति कमजोर हो गई थी किन्तु हमलोग जब भी उनके पास जाते वे आवाज के आधार पर हमें पहचान लेते और विश्वविद्यालय, विद्यालय तथा घर के समाचार पूछ लेते थे।
आज पूज्य पं० जी हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनका सम्पूर्ण जीवन, उनकी विविध प्रवृत्तियों और उनका विपुल साहित्य हमारे सामने आदर्श रूप में है, जो युगों-युगों तक हम सभी का पथ आलोकित करता रहेगा। ऐसे पूज्य गुरुवर्य को शतशः नमन ।
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