Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No. 6
मूल-प्रति परिचय
__उक्त 'पासणाहचरिउ' की एक प्रति आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर में सुरक्षित हैं, जिसमें कुल ९९ पत्र हैं। इन पत्रों की लम्बाई एवं चौड़ाई १ ." ४४.' है । उसके प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियाँ तथा प्रत्येक पत्र में ३५-४० वर्ण है। इसका प्रतिलिपि-काल वि० सं० १५७७ है । यह प्रति शुद्ध एवं स्पष्ट रूप से लिखित है।' अनेक विबुध श्रीधरों की भिन्नाभिन्नता
जैन साहित्य में लगभग आठ विबुध श्रीधरों के नाम एवं उनकी लगभग उतनी ही कृतियाँ उपलब्ध होती हैं । यथा-(१) पासणाहचरिउरे (२) वड्ढमाणचरिउ (३) सुकुमालचरिउ (४) भविसयत्तकहा" (५) भविसयत्तपंचमी चरिउ६ (६) भविष्यदत्तपंचमी कथा (७) विश्वलोचनकोश' एवं (८) श्रुतावतारकथा । इनमें से अन्तिम तीन रचनाएँ संस्कृत भाषा में तथा पाँचवीं रचना अपभ्रंश-भाषा में निबद्ध है। अतबाह्य साक्ष्यों के आधार पर तथा उनके रचनाकालों को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट विदित हो जाता है कि उन चारों कृतियों के लेखक भिन्न-भिन्न विबुध श्रीधर हैं क्योंकि उनका रचनाकाल वि० सं० की १४ वीं सदी से १७ वीं सदी के मध्य है, जो कि प्रस्तुत पासणाह चरिउ के रचनाकाल (वि० सं० ११८९) से लगभग २०० वर्षों के बाद की हैं । अतः इनका परस्पर में किसी भी प्रकार का मेल नहीं बैठता।
अवशिष्ट प्रथम चार रचनाएँ अपभ्रंश की है। उनकी प्रशस्तियों से ज्ञात होता है कि वे रचनाएँ एक ही कवि विबुध श्रीधर की है, जो विविध आश्रयदाताओं के आश्रय में लिखी गईं। कवि-परिचय
सन्दभित 'पासणाहचरिउ' प्रशस्ति में विबुध श्रीधर ने अपने पिता का नाम गोल्ह'. एवं माता का नाम वील्हा बतलाया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपना अन्य किसी भी प्रकार का पारिवारिक परिचय नहीं दिया। 'पासणावचरिउ' की समाप्ति के एक वर्ष बाद प्रणीत अपने 'वड्डमाण चरिउ' में भी उन्होंने अपना मात्र उक्त परिचय ही प्रस्तुत किया है । वह गृहस्थ था अथवा गृह-विरत त्यागी, कोई भी चर्चा उन्होंने नहीं की। कवि की 'विबुध' नामक उपाधि से यह तो अवश्य ही अनुमान लगाया जा सकता है कि अपनी काव्य-प्रतिभा के कारण उसे सर्वत्र सम्मान प्राप्त होता रहा होगा, किन्तु इससे उसके पारिवारिक जीवन पर कोई भी प्रकाश नहीं पड़ता। 'पासणाह चरिउ' एवं 'वड्डमाण चरिउ' की प्रशस्तियों के
१. दे० आमेर शास्त्र भण्डार जयपुर की ग्रन्थ सूचियाँ भाग-२ । २-९. वड्ढमाणचरिउ (विबुध श्रीधर कृत) भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित भूमिका पृ० ४
सं० ७ में इस प्रसंग में विशेष विचार किया गया है । १०-११. वास० ११२।३-४ ।
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