Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No. 6
विनीत शिष्य को शिक्षा देते हुए गुरु वैसे ही प्रसन्न होते हैं जैसे सारथी (अश्व शिक्षक) अच्छे घोड़े को हाँकते हुए आनन्द की अनुभूति करता है किन्तु ठीक इसके विपरीत अबोध एवं अविनीत शिष्य को शिक्षा देते हुए गुरु वैसे ही खिन्न होते है जैसे दुष्ट घोड़े को हाँकता हुआ उसका वाहक' । अविनीत शिष्य से खिन्न होकर गुरु सोचते हैं-मुझे इन दुष्ट शिष्यों से क्या लाभ ? इनसे तो मेरी आत्मा अवसन्न व्याकुल ही होती है इन्हे पढ़ाया-लिखाया, पाला-पोषा फिर भी ये उसी प्रकार स्वेच्छाचारी हो गये है, जिस प्रकार पंख निकल आने पर हंस पक्षी । अतः इन्हें छोड़ देने में ही कल्याण है।
शिक्षार्थी के कर्तव्य बिना पूछे कुछ न बोलना, सर्वदा सत्य बोलना अर्थात् क्रोधादि में असत् वचनों का प्रयोग न करना, गुरु की प्रिय और अप्रिय दोनों ही शिक्षाओं को धारण करना । गुरुजनों के निकट सदैव प्रशान्त भाव से रहना अर्थात् वाचाल न बनना, अर्थपूर्ण पदों को सीखना, निरर्थक बातें न करना । गुरु द्वारा अनुशासित होने पर क्रोध न करके शात रहना, क्षद्र व्यक्तियों के साथ हँसी-मजाक और अन्य क्रीड़ा न करना । अध्ययन के समय में अध्ययन करे ओर बाकी समय में एकाकी ध्यान करे। अगर गलत व्यवहार कर भी ले तो उसे छिपाए नहीं बल्कि किया हो तो "किया' और न किया हो तो 'नहीं किया' कहे ' । अकेले में वाणी से अथवा कर्म से कभी भी गुरु के प्रतिकूल आचरण न करना । गुरु की आज्ञा के बिना कोई भी कार्य न करना । प्रिय अथवा कठोर शब्दों द्वारा आचार्य जो मुझ पर अनुशासन करते हैं. वह मेरे लाभ के लिए है-ऐसा विचार कर उनका अनुशासन स्वीकार करना । गुरु मझे पत्र, भाई और स्वजन की तरह आत्मीय समझ कर शिक्षा देते हैं, ऐसा समझकर उनके अनुशासन को कल्याणकारी मानना। गुरु के मनोकुल वैसे ही आचरण करना जैसे उत्तम शिक्षित घोडा चाबुक देखकर उन्मार्ग छोड़ देता है । विनीत शिक्षार्थी न तो गुरु को कुपित करता है और न कठोर अनुशासनादि से स्वयं ही कुपित होता है तथा न गुरु के दोषों का अन्वेषण ही करता है"। गुरु के बुलाये जाने पर मौन रहना । शिष्य को ऐसे आसन पर बैठना चाहिए जो गरु १. रमय पण्डिए सासं, हयं भटुं व बाहए।
बालं सम्मइ सासन्तो, गलियस्सं व वाहए ।। उत्तराध्ययन-११३७ । २. वही-२७१४-१५ । ३. वही-१११४ । ४. वही-११८-११ । ५. वही-१।१७। ६. वही-२६।९। ७. वही-११२७ । ८. वही-११३९ । ९. वहो-१।१२। १०. वही-११४०।
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