Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No. 6
हुआ यशोधरा के करुणा विगलित जीवन की ओर मुड़ पड़ा - राहुल जननी के दो-चार आँसू ही तुम्हें इसमें मिल जायँ तो बहुत समझना और उनका श्रेय भी साकेत की उर्मिला देवी को ही है, जिन्होंने कृपापूर्वक कपिलवस्तु राजोपवन की ओर मुझे संकेत किया ।" उसकी परिणति है यशोधरा जैसे करण और सरस प्रबन्ध की रचना |
'साकेत' मैथिलीशरण गुप्त का और भी प्रशस्त, बड़ा प्रबन्ध-काव्य है, गुणशीलता में, काव्यसम्पदा में, कारुण्य के उद्भावम में। आधी सदी से भी कई वर्ष पूर्व विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक मौलिक प्रेरक साहित्यिक निबन्ध 'काव्येर उपेक्षिता' के नाम से लिखा था । जिसमें अन्य उपेक्षित नारी पात्रों के साथ लक्ष्मण पत्नी उर्मिला की भी चर्चा थी । आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदीजी ने बाद में चलकर एक मार्मिक निबन्ध लिखा - "कवियों की उर्मिला विषयक उदासीनता ।" यह निबन्ध कविवर गुप्तजी के लिए प्रेरणा का दीप बन गया । साकेत जैसे हिन्दी के श्रेष्ठ महाकाव्य की रचना हुई । खड़ी बोली की प्रकृति और चरित्र के अनुरूप ढला उच्चकोटि का प्रथम महाकाव्य और रामचरितमानस की रचना के साढ़े सौ वर्षों बाद हिन्दी का यह प्रथम रामकाव्य है, जिसने आधुनिक हिन्दी को गौरव प्रदान किया । वर्तमान हिन्दी में गीत प्रवृत्ति को प्रश्रय मिलने के कारण प्रबन्ध-काव्यों की रचना की ओर मुड़ने वाले कवि नगण्य हैं । प्रबन्ध काव्य की रचना के लिए कहानी, उपन्यास और नाट्य लेखन की समन्वित प्रवृत्ति, महत् चरित्रों की सृष्टि की अटूट उदात्त शक्ति अपेक्षित है, कल्पना और अनूभूति कलात्मक योग की अपेक्षा है, उनसे गुप्तजी की प्रतिभा ओत-प्रोत है । इसीलिए तो महादेवी ने गुप्तजी को 'आधुनिक तुलसी' कहा है । 'साकेत' में गुप्तजी ने जहाँ उर्मिला की विरह व्यथा की गाथा को ९ वें - १० वें सर्ग में करुण विप्रलम्भ रस से अश्रु सिक्त कर कविता का रूप दिया है, उसके तप, त्याग और विरह वेदना का एक से एक मार्मिक चित्र अंकित किया है, वहीं राम, सीता, भरत और लक्ष्मण जैसे महनीय चरित्रों के महत्त्व की भी रक्षा कर सके हैं। राम के तपोमय, त्यागमय चरित्र का गुणगान ही मानो उनका कवि-कर्म है ;
राम तुम्हारा वृत्त ही काव्य है,
कोई कवि बन जाय सहज संभाव्य है । ( साकेत )
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राम तुम मानव हो ? विश्व में रमे हुए नहीं
ईश्वर नहीं हो क्या ? सभी कहीं हो क्या !
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तब मैं निरीश्वर हूँ,
ईश्वर क्षमा करें,
तुम न रमो तो मन तुम में रमा करे ॥ साकेत )
१. यशोधरा की भूमिका पृ०-५ ।
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