Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 234
________________ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और उनकी अमरकृति 'साकेत' 187 'प्रिय-प्रवास' का हिल्लोलकारी संगीत । वस्तुतः महाकाव्यकार गुप्तजी का सर्वाधिक दुर्बल पक्ष शैली ही है।" किन्तु एक भाषा-शैली की दुर्बलता के कारण 'साकेत' के महाकाव्यों की परिधि से निकालकर बाहर नहीं किया जा सकता । वस्तुतः उसका महाकाव्यत्व असंदिग्ध है। उपसंहार 'साकेत' वस्तुतः जीवन का काव्य है, और वह भी ऐसे जीवन का जो हमारे समक्ष एक आदर्श रखता है। इसमें कवि की प्राचीनता की भूमि पर खड़े होकर नूतनता का संदेश दिया है। यदि डॉ० नगेन्द्र के शब्दों का प्रयोग किया जाय तो कहा जा सकता है-"उसमें ( साकेत में ) हमारे सुख-दुःख की कहानी अधिक स्पष्ट है । 'साकेत' स्वरूप से जीवन-काव्य है। उसमें भारतीय जीवन को ज्ञान के व्यापार के रूप में देखा है। भारतीय-जीवन आज का या पहले का ? यह प्रश्न किया जा सकता है। परन्तु इस प्रश्न से जीवन की एकता टूट जाती है। भारतीय-जीवन आज और पहले के अन्तविभागों में बंटकर अखण्ड नहीं रहता। हमारा आज पूर्व का ही प्रतिफलन है और आज और पूर्व दोनों में आत्मा की तरह बैठा हुआ जो भारतीय-जीवन है, उसी की व्याख्या 'साकेत' में है। उसमें प्राचीन का विश्वास और नवीन का विद्रोह दोनों समन्वित होकर एक हो गये हैं। इसलिए 'साकेत' में वर्तमान की सभी समस्याएँ हैं। परन्तु उसका समाधान भी मौजूद है-"व्यथा रहे पर साथ-साथ ही समाधान भरपूर । इसी दृष्टि से वह भारतीय-जीवन का प्रतिनिधि-ग्रन्थ है।" ___ वस्तुतः मैथिलीशरणगुप्त को हिन्दी-साहित्य में अमरत्व प्रदान करने के लिए उनका अकेला 'साकेत' ही पर्याप्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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