Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No. 6
जीवन के उत्थान में एक सार्थक भूमिका निभानी पड़ेगी। गुप्तजी की काव्य-दृष्टि उनपनी रचनाओं के माध्यम से हमारे जीवन के उत्थान में यही सार्थक भूमिका निभाती है । वे भद्रभावोद्भाविनी भारती के साधक हैं। जिसकी आरती मानस भवन में आर्यजन उतारते हैं । मैं जीवन और काव्य के प्रति विधेयात्मक दृष्टि रखनेवाले इस महाकवि के शब्दों को ही दुहराते हुए कहना चाहूँगा-
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जयदेव मन्दिर - देहली समभाव से जिस पर चढ़ी नृप - हेम मुद्रा और रंक -बराटिका मुनि सत्य सौरभ की कली कवि कल्पना जिसमें बढ़ी फूले फले साहित्य की वह वाटिका ।
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