Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
View full book text
________________
180
Vaishali Institute Research Bulletin No. 6 साकेत के कवि ने प्रधानता विप्रलम्भ को दी है; किन्तु संयोग के भी उसने जो चित्र अंकित किये हैं वे अत्यन्त मधुर हैं। उदाहरण के लिए उमिला तथा लक्ष्मण के व्यंग-विनोद को लिया जा सकता है। वस्तुतः 'साकेत' के सभी दम्पत्तियों में आदर्श दम्पत्ति के जीवन का चित्र अंकित किया गया है। डॉ० नगेन्द्र के शब्दों में-"हमें 'साकेत' में वैवाहिक जीवन की अत्यन्त विस्तृत और सफल व्याख्या मिलती है। उसके वर्णन सरस भावमय और सच्चे हैं जिनसे कवि की जीवन व्यापिनी भावुकता का प्रमाण मिलता है।"
'साकेत' में जिस पुत्र-स्नेह की अभिव्यक्ति हुई है, वह अपने में बहुत अधिक महान् है । पुत्र के वियोग में दशरथ प्राण त्याग देते हैं; इससे बड़ा पुत्र स्नेह का और क्या प्रमाण हो सकता है ? कौशल्या में जो वात्सल्य की भावना है, उसमें मोह, भोलेपन और निस्पृहता का सुन्दर मिश्रण है । उसका वात्सल्य अत्यन्त उज्ज्वल, धवल एवं भव्य है । राम-नवास की बात सुनकर वह केवल यही चाहती है-'मुझे राम की भीख मिले', और इसके लिए अपनी मर्यादा को तोड़ने के लिए भी वह प्रस्तुत है—छोटी सपत्नी के चरणों पर मस्तक टेककर वह केवल यही भिक्षा माँगना चाहती है--
"मेरा राम न वन जावे, यही कहीं रहने पावे।" इन शब्दों में कितना दैन्य-भाव छिपा है, सहृदय पाठक इसका स्वयं अनुमान लगा सकता है । कैकेयी का वात्सल्य दीन अथवा निस्पृह नहीं है। वह पुत्रों से प्रेम करती है; पुत्रों के लिए मरने को तैयार है परन्तु उसमें अधिकार की भावना है और आवेग की प्रबलता।” भरत तो कैकेयी के औरस पुत्र हैं ही, उसे राम की माता होने का भी गर्व है। इसलिए वह मन्थरा से कहती है
"राम की माँ क्या कल या आज,
कहेगा मुझे न लोक-समाज-" किन्तु मन्थरा जिस विष का वपन करती है, वह फल लाता है और परिणाम स्वरूप राम के प्रति अगाध वात्सल्य भाव को रखने वाली कैकेयी उन्हें वनवास देती है। भरत की उक्तियों से उसका हृदय फिर निर्मल हो उठता है और वह फिर राम से उसी प्रकार स्नेह करने लग जाती है।
तीसरी माता हैं—सुमित्रा । "वह क्षत्राणी माँ है जो कत्र्तव्य की वेदी पर स्नेह का बलिदान करने को सदैव प्रस्तुत रहती है। उसके मातृत्व में मोह की दुर्बलता नहीं, कर्त्तव्य की शक्ति है।"
सास-बहू के मधुर सम्बन्धों के लिये कौशल्या और सीता को लीजिए। कौशल्या देवपूजा में लगी हुई है, सीता उन्हें आरती-धूप आदि सभी पूजा का सामान दे रही है और बीचबीच में पूछती जाती है-'माँ, क्या लाऊँ ?'
'साकेत' में अभिव्यक्त देवर और भाभी के सम्बन्ध बड़े ही स्निग्ध हैं । सीता का भरत तथा लक्ष्मण पर अमित स्नेह है। यह स्नेह कहीं-कहीं वात्सल्य को सीमा का स्पर्श करने लग
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org