Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की काव्य-यात्रा
163 राम के चारित्रिक उद्भावन में गुप्तजी की काव्य-कल्पना पर आधुनिक चिन्तन और गांधीवादी प्रभाव पूर्णतया परिलक्षित होता है :
सुख देने आया, दुख झेलने आया" +
+ मैं यहाँ जोड़ने नहीं, बाँटने आया" +
+ मैं आया उनके हेतु कि जो शायित हैं, जो विश्वविकल, बलहीन, दीन शायिन हैं।' x
+ गुप्तजी की अन्तःप्रज्ञा में राम का वह महत् चरित्र सदा अंकित रहता है, जिसने रावण की दानवी सभ्यता को आमूल ध्वस्त आर्यसभ्यता की स्थापना की थी :
मैं आर्यों का आदर्श बनाने आया, जन-सम्मुख धन को तुच्छ बनाने आया। सुख-शाति हेतु मैं क्रांति मचाने आया,
विश्वासी का विश्वास बचाने आया । ( साकेत ) राम आर्य सभ्यता के उत्थान के प्रतीक हैं। रावण पर राम की विजय आर्यत्व की विजय है तो सीताहरण उस उदात्त आर्य संस्कृति की उच्छेदन और उनका उद्धार भारत की सौभाग्य लक्ष्मी का उद्धार था। राम ने आर्यत्व की पुनः प्रतिष्ठा की, प्रकारान्तर से भारतीय स्वाधीनता भावी पुनरुद्धार का उसमें स्पष्ट संकेत है।
___ आर्य सभ्यता हुई प्रतिष्ठित, आर्य धर्म आश्वस्त हुआ।
'साकेत' महाकाव्य की महीन बुनावट में भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक पारवारिक और राष्ट्रीय आदर्शों को बड़ी कलात्मकता के साथ कवि ने प्रस्तुत किया है। यह उल्लेखनीय है कि 'साकेत' महाकाव्य का बीज रूप 'उर्मिला' नाम का प्रबन्ध काव्य था। धीरे-धीरे वह इतना बड़ा आकार प्राप्त कर सका। राम, सीता, लक्ष्मण, मांडवी आदि अन्य चरित्रों का समावेश ही नहीं किया गया, अपितु राम के उदात्त चरित को रामकथा की आधुनिक सामाजिक और सांस्कृतिक चिंतन में ढाला गया। पर यह बात स्मरणीय है कि गुप्त जी की काव्यकला की सर्वोत्तम सिद्धि निहित है-रघुकुल की सर्वाधिक दुःखिनी वधू उर्मिला के युग-युग से उपेक्षित चरित्र के उद्भावन, प्रणय, विग्रह के चित्रण और त्याग के गौरवगान में । वाल्मीकि, कालिदास और तुलसी की कविदृष्टि जिस उर्मिला की विरह-बेदना को काव्य के सुकुमार पृष्ठाधार पर उकेरने में असमर्थ हो गयी, गुप्त की की समर्थ प्रातिम कविदृष्टि नयी-नयी चारित्रिक घटनाओं, वेदना की विवृत्तियों से रच-रच कर उर्मिला का विरह
१. दुखसंवेदनायव रामे चैतन्यमदितम्-उत्तररामचरितः, भवभूति ।
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