Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No. 6
के चौदह प्रकार बताये गये है । इन चौदह प्रकारों के गुण अवगुणों के आधार पर तीन भागों में विभक्त किया गया है-उत्तम, मध्यम और अधम । जो विद्यार्थी गाय और हंस के समान हैं वे उत्तम हैं । गाय को यहाँ इस अभिप्राय में लिया गया है कि जैसे गाय थोड़ा सा तृण खाकर ज्यादा दूध देती है वैसे ही जो विद्यार्थी थोड़ा सा उपदेश सुनकर ज्यादा लाभ लेते हैं वे उत्तम हैं । तोता और मिट्टी के समान विद्यार्थी मध्यम है तथा बाकी बचे अधम की कोटि में आते हैं ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि विद्यार्थी-जीवन तपस्या का जीवन है। विद्योपार्जन एक साधना है और इस साधना के पीछे निहित है विद्या पाने की उत्कट अभिलाषा । विद्यार्थी वर्ग अगर अपना सर्वांगीण विकास चाहते हैं तो उन्हें गुरु की आज्ञा और उनके आदेशों को शिरोधार्य करते हुए बुद्धि को सन्देहशील तथा विश्वासहीन नहीं होने देना चाहिए। साथ ही अनुशासनहीनता का सर्वथा त्याग तथा एक क्षण भी व्यर्थ न खोकर अध्ययनरत रहना परमावश्यक है ।
१. मृच्चालिन्यजमार्जारशुककङ्कशिलाहिभि।। गोहंसमदृषच्छिद्रघटदशजलौककैः॥
पुराण-१११३९
आदि.
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