Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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जैन शिक्षादर्शन में शिक्षार्थी की योग्यता एवं दायित्व
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१०-कुछ शिष्यों को उस बिलाड़ी के समान बताया गया है जो दूध को जमीन पर गिराकर बाद में उसे चाटती है। इसी प्रकार कतिपय शिष्य प्रमादवश जब आचार्य का व्याख्यान होता है तो ध्यान नहीं देते है और व्याख्यान के समाप्त हो जाने पर दूसरों की बातों को सुनने की कोशिश करते है ।
११-कुछ शिष्य जाहग के समान होते हैं जैसे जाहग थोड़ा-थोड़ा दूध गिराकर चाटता है, वैसे ही शिष्य पूर्वगृहीत अर्थ को याद करके प्रश्न पूछते है और आचार्य को कष्ट नहीं देते हैं ।
१२-चार ब्राह्मणों का उदाहरण देते हुए कहा गया है-कहीं से चार ब्राह्मणों को एक गाय दान में मिली। चरो बारी-बारी से उसे दुहते । कल इसे दूसरा दुहेगा, फिर मैं इसे चारा क्यों हूँ ? ऐसा विचार कर सब रोज दूह लेते थे और गाय को चारा नहीं देते थे। परिणामतः गाय मर गयी। तदोपरान्त दुबारा किसी ने उन्हें गाय नहीं दी। इसी प्रकार जो शिष्य आचार्य की वन्दना पूजा तथा सेवा सुश्रूषा आदि नहीं करते हैं वे श्रुतज्ञान से सर्वथा वंचित रह जाते है। अतः शिष्यों को अपने गुरु के प्रति श्रद्धा, भक्ति, आदर तथा विनय भावना रखना चाहिए।
१३-अब गोशीर्षचन्दन निर्मित अशिवोपशमिनी भेरी का उदाहरण दिया गया है । जो कृष्ण के पास थी। जिसकी आवाज सुनने से ही छः महीने तक रोग नहीं होता था और पहले से रोगग्रसित व्यक्ति का रोग शान्त हो जाता था। एक बार एक परदेशी गोशीषचन्दन की तलाश करते हुए कृष्ण के भेरीपाल के पास पहुँचा और बहुत सा द्रव्य देकर भेरी का एक खण्ड खरीद लिया। इसी प्रकार जब भी उसे आवश्यक होता वह भेरीपाल को द्रव्य देकर भेरी का खण्ड ले जाता । जब कृष्ण को इस बात का पता चला तो उन्होंने भेरीपाल के कुल का नाश कर दिया। इसी प्रकार सूत्रार्थ को खण्डित करने वाला शिष्य भेरीपाल के समान बुद्धिहीन कहा गया है।
१४ आभीरी का उदाहरण देते हुए कहा गया है-कोई आभीरी अपने पति तथा सहेलियों के साथ गाड़ी में घी के घड़े भरकर नगर में बेचने चली। उसका पति गाड़ी पर था और वह नीचे खड़ी अपनी पत्नी के हाथो में घड़े पकड़ा रहा था। पति ने समझा अभोरी ने घड़ा पकड़ लिया और आभीरी समझी कि घड़ा अभी उसके पति के हाथ में है। इसी असमंजस घड़ा नीचे गिरकर फूट गया। आभीरी और उसके पति में तू-तू मैं-मैं होने लगी, तुमने ठीक से नहीं पकड़ा तो तुमने ठीक से नहीं पकड़ा। खोझकर आभीर ने अपनी पत्नी को खूब पीटा। इसी बीच बाकी बचे घी में से कुछ कुत्ते चाट गये और कुछ जमीन पी गयी। तब तक उसके सहयोगी अपना घी बेचकर लौट आये। आभीरी ने अपने घी को बेचा लेकिन कुछ लाभ न हुआ। इसी प्रकार जो शिष्य अपने गुरु के प्रति कटु वचन कहता है तर्क-वितर्क कर कलह करता है, वह कभी भी प्रशस्त नहीं कहा जा सकता ।
इसी प्रकार आदिपुराण में भी मिट्टी, चलनी, बकरा, बिलाव, तोता, बगुला, पाषाण, सर्प, गाय, हंस, भैसा, फूटा घड़ा, डॉस और जोक आदि चौदह दृष्टान्तों के द्वारा शिक्षार्थी
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