Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
View full book text
________________
24
Vaishali Institute Research Bulletin No. 6 विविध तीर्थकल्प' में पाटलिपुत्र का बड़ा ही रोचक वर्णन मिलता है । उसके अनुसार वहाँ ७२ कलाओं की शिक्षा का उत्तम प्रबन्ध था। यन्त्र, तन्त्र एवं मन्त्र विद्या, हय, गज, वृषभ एवं अश्वविद्या, वास्तु विद्या तथा इन्द्रजाल विद्या के साथ-साथ रसायन, धातुवाद, निधिवाद, अंजनगुटिका, पाद-प्रलेप तथा रत्न परीक्षा में वहाँ के लोग बहुत ही निपुण थे । यही कारण है कि आचार्य आर्यरक्षित चतुर्दश विद्याओं का अध्ययन करने हेतु दशपुर से यहाँ आए थे। इनके अतिरिक्त भी जिनप्रभसूरि ने अन्य अनेक मनोरंजक सूचनाएँ दी है, जो संक्षेप में इस प्रकार हैं
(१) विद्वानों में आत्म-सन्तोष के लिए पाटलिपुत्र में ८४ वाद-शालाए थीं।
(२) सप्तनन्दों का ९९ कोटि द्रव्य पाटलिपुत्र में छिपा पड़ा है। वहीं पर ५ स्तूप हैं, जो धन-धान्य से भरे हुए थे तथा लक्षणावती के राजाओं से युद्ध के समय काम आए थे।
(३) यहाँ रत्न कम्बलों का पर्याप्त मात्रा में व्यापार होता था। (४) चाणक्य की प्रेरणा से चन्द्रगुप्त एवं पर्वतक की भेट यहीं पर हुई थी।
(५) यहाँ प्रतिदिन इतने बच्चों का जन्म एवं मुण्डन-संस्कार होता था कि उनके केशों की रस्सी बनाकर पाटलिपुत्र को बेढ़ा जा सकता था ।
(६) पाटलिपुत्र में इतना दूध होता कि उसके मक्खन से वेगगामी पहाड़ी नदी को रोकने के लिए बाँध बनाया जा सकता था । . (७) वहाँ के व्यक्ति इतने धनाढ्य थे कि एक सहस्र योजन की यात्रा में हाथी के पैरों से जितने गड्ढे हो सकते हैं, उन्हें एक ही व्यक्ति अपनी स्वर्णमुद्राओं से भर सकता था।
(८) एक आठक (लगभग ४० किलो) तिलों के बोए जाने पर जितने तिल उग सके, उतनी-उतनी स्वर्णमुद्राएँ वहाँ के निवासियों के घरों में सामान्य रूप से सुरक्षित रहती थीं।
उक्त वर्णन जिनप्रभ सूरि ने किस आधार पर किया है, इसकी जानकारी प्राप्त करना कठिन है । इन वर्णनों में अतिशयोक्ति भी हो सकती है किन्तु यह तथ्य है कि पाटलिपुत्र प्रारम्भ से ही समृद्ध नगर रहा है। मेगास्थनीज ने इसकी समृद्धि, प्रतिष्ठाशक्ति एवं सुव्यवस्थाओं का विस्तृत एवं मनोहारि वर्णन किया है।
हाथीगुम्फा शिलालेख से यह स्पष्ट विदित होता है कि पाटलिपुत्र के नन्दनरेश जैनधर्मानुयायी थे और इसीलिए सम्भवतः भारतीय इतिहास में प्रतिष्ठित स्थान नहीं मिल सका।
महासर
इसकी पहचान वर्तमान मसाढ़ ग्राम से की गई है। यह स्थल मुगलसराय-आरा-पटना रेल-मार्ग पर कारीसाथ स्टेशन के किनारे स्थित है। चीनी यात्री हयूनत्सांग ने अपने यात्रा१. दे० विविध तीर्थकल्प पृ० १५७-१५८ । २. दे० विविध तीर्थकल्प पृ० १५७-१५८ । ३. दे० भारत के प्राचीन राजवंश प्रथम भाग (पं० रेऊ) पृ० ५१-५२ । ४. दे० भद्रबाहु चाणक्य चन्द्रगुप्त (डॉ. राजाराम जैन) भूमिका पृ० १८-१९ । ५. दे० समरा० छठवाँ भव, पृ० ५०८, ५१८ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org