________________
प्राकृत भाषा की उत्पत्ति और प्राकृत अभिलेखों का महत्त्व
69
है। ई० पू० सदियों में साँची वेदी पर वंश के दानकर्ता का नाम खुदा है। नासिक लेख में उषमदत्त द्वारा दान का उल्लेख मिलता है। उसने ३००० कापिण श्रेणियों के बैंक के सूद पर जमा किये थे। उस आय से भिक्षुओं के भोजन और जीवन का प्रबन्ध किया जाता था । उसने ब्राह्मण कन्याओं के विवाह करने के लिए भी दान दिया ।
प्राकृत अभिलेखों में इतिहास और पुरातत्त्व सम्बन्धी प्रचुर सामग्री है। अशोक, कनिष्क, खारवेल, गौतमी पुत्र-सातकणि, नईपान, रुद्र दामन, पुलमाभी, वाकाटक आदि के सम्बन्ध में प्रचुर सामग्री मिलती है। अशोक के धर्मलेख मौर्य साम्राज्य की विशेषता प्रकट करते हैं। अशोक के अभिलेखों से ही उसके पितामह चन्द्रगुप्त मौर्य की शक्ति का अनुमान होता है। यों तो उसके लेख प्रायः सम्पूर्ण भारत पर विस्तृत साम्राज्य की जानकारी कराते हैं । परन्तु त्रयोदश लेख में कलिंग विजय की बात कही गयी है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि कलिंग को छोड़कर हिमालय से मद्रास तक का प्रदेश चन्द्र गुप्त मौर्य ने जीता था । इस प्रकार प्राकृत अभिलेखों में इतिहास का प्रचुर सामग्री निहित है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org