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Vaishali Institute Research Bulletin No. 6 (ख) शब्दानुविद्धत्व का अभिप्राय पदार्थ के साथ शब्द का तादात्म्य मानना ठीक नहीं है
अर्थ और शब्द का तादात्म्य मानना भी ठीक नहीं है, क्योंकि शब्द और अर्थ विभिन्न इन्द्रियों के द्वारा जाने जाते हैं, इसलिए उनमें तादात्म्य नहीं है। अनुमान प्रमाण से भी शब्द और अर्थ में तादात्म्य सिद्ध नहीं होता है, यथा--- "जिनको विभिन्न इन्द्रियों के द्वारा जाना जाता है, उनमें एकता नहीं रहती, जैसे-रूप चक्षुरेन्द्रिय से जाना जाता है और उस रसनेन्द्रिय से, इसलिए इनमें एकता नहीं है। इसी प्रकार शब्दाकाररहित नीलादिरूप और नीलादिरहित शब्द क्रमशः चक्षुरिन्द्रिय और कर्णेन्द्रिय का विषय होने से उनमें एकता नहीं है अतः अर्थ और शब्द में एकत्व न होने से उनके तादात्म्य को शब्दानु विद्धत्व नहीं माना जा सकता। अनुमान प्रमाण से इस बात का निराकरण हो जाता है कि शब्द और अर्थ में तादात्म्य सम्बन्ध सम्भव नहीं है।
शब्द-अद्वैतवादी कहते हैं कि 'यह रूप है' इस प्रकार के शब्द रूप विशेषण से ही रूपादि अर्थ की प्रतीति होती है। इसी कारण से शब्द और रूपयुक्त पदार्थ में एकत्व माना जाता है। इसके प्रत्युत्तर में प्रभाचन्द्र आचार्य कहते हैं कि शब्द-अद्वैतवादी का यह कथन भी ठीक नहीं है, क्योंकि यहाँ प्रश्न हो सकता है कि 'यह रूप है' इस प्रकार के ज्ञान से वापता को प्रप्त (तादात्म्ययुक्त) पदार्थ जाने जाते हैं अथवा यद ज्ञान भिन्न वाग्रूपता विशेषण से युक्त पदार्थों को जानता हैं ? इनमें से किसी मी विकल्प को मानना निर्दोष नहीं है।
यदि यह माना जाय कि जब नेत्रजन्यज्ञान रूप को जानता है, तो उसी समय वापता के पदार्थ जाने जाते हैं अर्थात् शब्दरूप पदार्थ है, ऐसा ज्ञान होता है-शब्द-अद्वैतवादी का ऐसा मानना ठीक नहीं है। नेत्रजन्यज्ञान का विषय शब्द (वाग्रूपता) नहीं है। अतः उसमें उसकी प्रवृत्ति उसी प्रकार नहीं होती, जिस प्रकार अविषयी रस में चाक्षुष ज्ञान की प्रवृत्ति नहीं होती। यदि अपने विषय से भिन्न विषयों को चाक्षुषज्ञान जानने लगे, तो अन्य इन्द्रियों की कल्पना व्यर्थ हो जायेगी क्योंकि चक्षुरिन्द्रिय ही समस्त विषयों को जान लेगी। . अब यदि माना जाय कि पदार्थ से भिन्न वापता है और इस प्रकार के विशेषण से युक्त पदार्थ को चाक्षुषज्ञान जानता है, तो प्रभाचन्द्र कहते हैं कि उनका यह दूसरा पक्ष भी ठीक नहीं है, क्योंकि शुद्ध अर्थात् केवल रूप को जानने वाला और शब्द को न जानने वाला चाक्षुषज्ञान यह नहीं जान सकता कि यह पदार्थ शब्द रूप विशेषण वाला (भिन्न वाकरूपता विशेषण
१. (क) प्रभाचन्द्र : प्र० क० मा०, १/३, पृ० ४० ।
(ख) न्या० कु० च०, १/५, पृ० १४४ । (ग) वादिदेव सूरि : स्या० र०, १/७, पृ० ९५ । २. वही। ३. . . . . . . रूपमिदमिति ज्ञानेन हि वापता प्रतिपन्नाः पदार्थाः प्रतिपद्यन्ते
भिन्नवाग्रूपता विशेषणविशिष्टा या ?-प्र० क० मा०, १/३, पृ० ४० । ४. प्र० क० मा०, १/३, पृ० ४० ।
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