Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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आचार्य हेमचन्द्र के प्राकृत धात्वादेशों में बज्जिका के क्रिया-रूप 105 का प्रयोग तो संस्कृत भाषा में हुआ किन्तु "तीर" का नहीं हुआ। हाँ, लोक-प्रयोग से यह बज्जिका में उपलब्ध है।
हेमचन्द्र ने प्राकृत व्याकरण तथा कुमारपालचरित काव्य में अनेक धात्वादेशों का संग्रह किया है, जिनमें बज्जिका से सम्बद्ध जितने हैं, वे वहाँ विवेचन में आये हैं । देशोनाममाला में संगृहीत देशी शब्दों में भी कुछ धात्वादेश रूप में शब्द प्राप्त होते हैं । उनमें से कतिपय धात्वादेश यहाँ दिए जा रहे हैं।
सिद्ध हैम प्राकृत भाग के धात्वादेश ये है
कथ (८।४।२, ६।२), बोल्ल, बोलइत, बोलल, बोलव; बुभुक्षि (५।५); बीजइ, बीजो (भोजन के लिए बुलाहट); पिबती (१०।७), घोट्टइ, घोटइत, घोटब, घोटल; निद्राति (१२, ९) उघ, अउँघी, अउँघाइत; छदि (२१, १५) ढक्क, ढकना, ढकनी, ढंकइत; मिश्र (२८, २८) मेलब, मेरवइत, मेराओत, मेराएत, मेराओल, मेराएल; स्पृह (३४, २३) सिह, सिहाइत, सिहाएँत; निलीड् (५९, ३९) लुक्क, लुकाइत, नुकाइत, चोरिया-नुकिआ; काणेक्षितं करोति (६६, ४२), निआरइ, निहारइत, निङ्हारइत; क्षुरं करोति (७२, ४४) कम्मइ, केश कमाइत, कमाएल, कमऽतइ; व्याह (७६, ४८) कुक्क, कूक, कुहकइत, कुहकल; मुंचति (९१, ५७) छट्टइ, छाड़न, छाड़ी, छोड़, छोड़इत; गर्जति (९८, ६२) बुक्कइ, भुकइत, हिन्दी में बुक्का फाड़ कर रोना; वृषभो गति (९९, ६२) ढिक्कइ, ढहलोइ (साढ़ को पुकारने का सम्बोधन शब्द); राजते (१००, ६३) छज्जइ, छजइत हइ; मृज्जति (१००, ६४) बुड्डइ, बूड़, बूड़त, डूब (वर्णव्यत्यय) डुबइत; मृज् मार्जयति (१०५, ६८) पुछइ, पोंछइत, पोंछल, पोंछत; भुनक्ति, भुक्ते (१०७, ७४), जेमइ, जिमइत (जिमअदने तत्सम धातु भी है), जेओनार; मण्डयति (११५, ७६) टिविडिक्कइटिकइत, टीका, मटिक्का, माङ्टीक देलकइ; तोडति (११६, ७७, ७८), खुट्टइ, खोटइत, खोटल, खोटलक; विवरति (११८, ८०) लॅसइ, लॅसइत, हॅसत, कूति (११९, ८१) अट्टइ, अटका चढ़ल हइ; मृनानि (१२६, ८७) भलइ, भड्डइ, मडुआमलदेही; स्पन्दते (१२७, ८७), चुलचुलइ चुलचुलाइत हइ, चुलचुल करइत हइ; शीयते (१३०, ८९) झडइ, झाडल; निषेधति (१३४, ९१), हक्कइ; हॉक, बऍल हॉक देही; सन्तप्यते १४०, ९४) झड्खइ, झक्खन; क्षिप्यति (१४३, ९७) पेल्लह, हुलइ, घर में हूल देलकइ, हरइत, रेल-पेल, अपेल, हूल (कै); स्वपिति (१४६, १००) लुट्ठइ, लोट्टइ, लोट-पोट, लोटनी; विलपति (१४८, १०१) झज्खइ, बडबडइ, झंखइत, बड़बड़ाइत, बड़बड़ही; प्रदीप्यते (१५२, १०३), सधुक्कइ, धुकइत, बेल धुकलक; क्षोभते, क्षुभ्यते (१५४, १०४), खरउरइ, खउरा, खउराह; भाराक्रान्ते नमति (१५८, १०४), निसुढइ, निहुरइत हइ, निहुरल, निहुरत; भ्रमति, भ्राम्यति (१६१, ७१३), गुम्मई, झम्पइ, चककम्म, गुम्भ हो गेलइ, ॲपइत, चकमा, गच्छइ (१६२, ६) पच्चडइ, पच्चड़, पचड़ा, पचड़ी, पचड़, उपालम्भ (१५३, ६) झडखण, झखइत; आगच्छति (१६३, १०) अहिपच्चुअइ, पहुँचइत, पहुँच; प्रत्यागच्छति (१६६, १२), पलोट्टइ, पलोटइत, पलओटन, पलट, पलटा, उलट-पलट, पलटइत, पूर (१६९, १४) अग्घवइ,
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