Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
View full book text
________________
108
Vaishali Institute Resarch Bulletin No. 6
सिआइ; सीहरओ (आसार, मेघ की झड़ी, ८११२) सीकर, देह सीहरहइत हएँ, देह-तासीहर करइत हऍ; सुधिरं (घातम्, ८१३७) सुंघइत, सूङ्हल, सांप सूङ्ह लेलकइ; सोत्ती (नदी स्रोतम्, ८१४४) सोती, सोता-हिन्दी, सोतिआएल; हत्थलिअं (हस्तापसारितम्, ८१६४) हथिअबइत, हस्थल मारइत, हत्था, हथड़ा; हिल्लूरी (लहरी, ८६६७) पानी के हिलोरा, हिलोर, हिलूरइत, हिलोरदेही आदि ।
यों तो आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के विकास में प्राकृत का विशेष योगदान रहा है, किन्तु आचार्य हेमचन्द्र ने तद्भव धातुओं तथा शब्दों, देशीशब्दों, धात्वादेशों आदि का संग्रह करके बज्जिका के विकासक्रम का दिग्दर्शन कराया है ।
____ आचार्य पं० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आदि विद्वानों का यह मत है कि हेमचन्द्रीय अपभ्रंश ही हिन्दी का आदिकालीन रूप है। अतः हिन्दी संघ की एक बोली होने के कारण बज्जिका के निर्मापक तत्त्व हेमचन्द्र की भाषा में मिलने ही चाहिए और वे किसी अन्य क्षेत्रीय भाषा की अपेक्षा कम परिमाण में नहीं मिलते ।।
हेमचन्द्रीय अपभ्रंश के अवयव बज्जिका के भवन की नींव के रूप में प्रमाणित हो रहे हैं।
-
-
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org