Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No. 6
अघाऐल, अघाएँत, क्षर (१७३, १६), खिरइ, पडतालखिर गेलइ; विगलति ( १७५, १८ ) थिप्पइ, थप्प, ठप्प; भ्रंश (१७७, २०) फुट्ट चुक्क, भुल्ल, फूट, चूक, भूल, भुलइत, भुलावा; स्पृश (१८२, २७) छिवइ, छुअइत, अछूत, छुआछूत, स्पृश (१८२, २७), फंस, फॅसइत, फॉस, फॅसल; प्रविश (१८३, २८ ), रिअ, रिआइत, रिजाइत; रूह (१८५, ३६, २९, ३०), चड्डु, चढ़इत, चढ़ल-भरल चढ़ी भष (१८६, ३०) भुक्क, भुकइत, बोल-भूक; कृष (१८७, ३१), कड्डइ, कढ़नी, काढल, कढ़इत; भृक्ष (१९१, ३६) चोप्पडइ, चुपड़इत, चोपड़इत, चोपड़ल; काङ्क्ष (१९२, ३७), सिहइ, सिहाइत, सिहाऍल, सिहतइ तक्ष (१९२, ३९), पिशल - प्रा० भा० व्याक० अनु० (२०८) चच्छइ, चॉछल, चॅछइत, चॉछदेही; त्रस (१९८, ४२) डरइ, डेराऍल डरपोक, आरूह (२०६१३३१, ४७१८२) चड, चढ़इत हएँ; मुह (२०७, ४७), गुम्भइ गुम हो गेलइ, लुट (२२३, ८३) पलोट्टइ, पलओटॅन, पलटा, तक्ष (३९५), छोल्ल, तरकारी छोलइत हुइ, छोलबी; हेमचन्द्र की देशीनाममाला देशी ( अज्ञातव्युत्पत्तिक) शब्दों का संग्रह है, जिनमें धात्वादेश भी सम्मिलित हैं, यहाँ उसमें संगृहीत कुछ धात्वादेश दिए जा रहे हैं । देशी शब्दों को, जो "इअ" प्रत्यय से संयुक्त होते हैं, "क्त" (इत) साधित विशेषण रूप में प्रयुक्त भूतकालिक कृदन्त समझा जाना चाहिए । उग्गाहिअं (गृहीतम् देशीनाममाला, १ १३७), उगाहल, चन्दा उगाहइत हइ । उच्छविअं ( शचनीयम् १।१०३) ओछाओन, विछावन, विछओना, ओछविअउ (मैथिली), उच्छिन्त ( उत्क्षिप्तम्, १/१२४) छितराऍल, छितराइत; उज्जगिरं ( औन्निद्रयम् १1११७ ), उजगी, रात्रि जागरण (हिन्दी) मा निशा सर्वभूतानां तस्यां जार्गात संयमी । उत्थलिअं ( उत्स्थलितम् १।१०७ ) उत्थर, उथराह, ई पोखरी उत्थर हो गेलइ; उज्झरिअं (क्षिप्तम्, १/१२३ ), ओझराऍल, ओझरा, ओझराऍत, उछरिअं ( उत्खातम्, १1१०० ) ओदारल, ओदारत, ओदारब; उंघइ (निद्राति, १।१०२) अउँघाइत, अउँघी, उग्गइ ( उद्गत, १११०२) उगइत, उगल, उगत; उज्जगुज्जा ( स्वच्छम् १।११३) उजबुजाऍल का आधुनिक अर्थ सांस लेने की बाधा का होता है । ऊ लरिका पानी में उजबुजागेल हएँ । उड्डियाहरणं ( उत्पतनम् १।१२१) उड़िआएँत, उड़ि आऍल; उण्णालिअं (उन्नमितम्, १।१३६) उनारल, उनारब, उनारत; उत्फुण्णं (आपूर्णम्, १।९२), उफनाऍल, उफनाइत उन्भुआणं (भाजनादुच्छलति, १1१०५) उत्रिआन, उधिआऍत; उम्भड्डो ( बलात्कार; ११९७ ) उमड़इत, मेघ उमड़इत आरहल हऍ; उम्मत ( उन्मत ११८९ ) उमताऍल; उव्वरिअं (उद्वृत्तम् १।१३२) अधिकम्, उबरल, उबरत, उबाडू; उडेल (उड्डोल, १।१११), उत्डुल, दुल, उड़ेलइत; उब्बिंबं ( खिन्नम्, १1१११), उबिआऍल, उबल, हिन्दी - ऊबा हुआ; उसकी (उन्मगति, ११८८), उमंग, उमकी, उमकइत, खइ उमकी; उल्लसिअं ( उल्लसितम् १।११५) हुलसइत, हुलसल, हुलास ओढणं (उत्तरीयत्, ११५५) ओढ़ना, ओढ़त, ओक्किइ (बान्तम् १।१५१ ) ओकिआइत; ( ओसुक्कइ --- वेजयति एवं प्रेरयति १।१६३), उसकवइत, उसकाऍल; ओल्लरिओ (सुप्तः, १।१६३) ओलरल, ओलरत, ओलारी; ओहसिअ ( अपहस्तम्, १।१७३) ओहसल, फुलनाई ओहस गेलइ ओहर ( खिन्नम्, १1१५७) निहुरल, निहुरइत; कडाह पल्हतिअं ( कटाहपर्यस्तम्, २०२५) पलथा, पलथी, बऍल गड़ी पलया मार
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