Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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जैन साहित्य में अहिंसा
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मेरी बुद्धि में नहीं उतरता। मैं मानता हूँ कि यह शाब्दिक खेल का प्रश्न नहीं है । पर हृदय की सूझ-बूझ का प्रश्न है । यदि भगवान् महावीर में तनिक भी त्रुटि नजर आती तो विश्व भर में अनन्य ऐसा निरामिषहारी जैन संघ स्थापित करने योग्य शक्ति ही वे न प्राप्त कर सकते' । आरोप लगाते रहे हैं । यदि वे स्वयं ऐसा करते होते तो बौद्ध साहित्य में भी कहीं जैनियों पर यह आरोप नहीं
जैन बौद्धों पर मांसाहार का बौद्धों पर यह आरोप क्यों लगाते । लगाया गया है |
इस सन्दर्भ में आवश्यक है कि जैन आगमों एवं साहित्य में इस तरह के सन्दर्भों की खुली एवं स्पष्ट व्याख्या होनी चाहिए जिससे भविष्य में पुन: किसी प्रकार की भूल न हो ।
१. " जैन धर्म और मांसाहारपरिहार" से उद्धृत |
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