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महाकवि पुष्पदन्त का भाषात्मक अवदान
माँ
करोड़
पतंग
चुमभी
हाथी
मंडल
अल्लिव देना अरणाल
कमल इज्जा
कण
तीर कप्पड़ कपड़ा
बैल कुड़िया टुकड़ा खीच्च
खिचड़ी घार
कपड़े की कुंडी शीघ्र तुंगी
रात्रि पूण
पूस
तोता कुत्ता राली
झगड़ा संच = रूपरेखा (सांचा) सिव
जसहरचरिउ एवं णायकुमार चरिउ में भी ऐसे सैकड़ों देशी शब्दों का प्रयोग हुआ है। इन शब्दों के तुलनात्मक अध्ययन से केवल भाषाशास्त्र के इतिहास का ही पता नहीं चलता है, अपितु संस्कृति के कई तथ्य भी उजागर हो जाते हैं। जिस प्रकार पाणिनि के व्याकरणों में प्रयुक्त शब्दों के आधार पर डा. वासुदेवशरण अग्रवाल ने "पाणिनिकालीन भारतवर्ष' नामक पुस्तक लिखी है, उसी प्रकार पुष्पदन्त द्वारा प्रयुक्त देशी शब्दों के आधार पर "दशवीं शताब्दी का भारत" की संरचना की जा सकती है ।
५. पुष्पदन्त को भाषा का जादूगर कहा जा सकता है। क्योंकि उन्होंने अपने काव्यों में प्रसंगों के अनुसार भाषा का प्रयोग किया है। यदि कोई व्यक्ति अपभ्रंश आदि भाषा का जानकार नहीं भी है और वह पुष्पदन्त के काव्यों में वर्णित युद्ध के वर्णनों को सुने तो उसको रोमांच हो जायेगा । पुष्पदन्त के साहित्य में ऐसे सैकड़ों शब्द हैं, जो वस्तु के स्वभाव को अपनी ध्वनि से ही व्यक्त कर देते हैं। ऐसे ध्वन्यात्मक शब्दोंमें से कुछ द्रष्टव्य हैं. :कड़यडन्त
हड्डियों का कड़कड़ाना किलकिलन्त
योद्धाओं का खिलखिलाना खणखणन्त
तलवारों का खणखणाना टणटणटणन्त
घण्टियों का टनटनाना गड़गड़न्त = बादलों का गड़गड़ाना के के
मोर की आवाज गुम-गुम
भौरों का गुंजन मे मे
भेंड़ों की आवाज हिलि-हिल - घोड़ों का हिनहिनाना ६. महाकवि पुष्पदन्त यायावर थे । उन्होंने उत्तर से दक्षिण भारत का भ्रमण किया था। उनका अधिकांश समय दक्षिण भारत में व्यतीत हुआ। अतः उन्होंने जिन देशी १०. पाण्डेय, राजनारायण; महाकवि पुष्पदन्त, जयपुर, १९७८, पृ० २७४-२७५ ।
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