Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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समराइच्चकहा में सन्दर्भित प्राचीन बिहार
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वहीं पर एक पहाड़ी नदी भी बहती थी।' तपोवन के इस प्राचीन भूगोल का मेल वर्तमानकालीन हजारीबाग एवं चाइवासा से बैठ सकता है, जहाँ आज भी घने जंगल हैं। बिहार सरकार ने कुछ समय पूर्व वहाँ राष्ट्रीय उद्यान (Natinal park) बनाया है। समीप में ही दामोदर नदी भी बहती है। हजारीबाग की व्युत्पत्ति भी सहस्राराम अर्थात् "हजारों वाटिकाओं वाला प्रदेश' से हो सकती है । चाइवासा शुद्ध प्राकृत शब्द है, जो त्यागीवास से बना है । अतः इन नगरों के भूगोल एवं व्युत्पत्ति मूलक अर्थों की दृष्टि से भी इसी प्रदेश में वसन्तपुर एवं सुपरितोषपुर नामक तपोवन या आश्रम होना चाहिए, ऐसा प्रतीत होता है ।
हरिभद्र ने वसन्तपुर के “विमानच्छन्दक' नामक राजमहल को सर्वसुविधासम्पन्न बतलाते हुए कहा है कि वह वर्षाऋतु के लीला-दृश्यों की शोभा से युक्त था। गुणसेन ने वहाँ वहाँ पर बल्ख, तुरुष्क एवं वज्रजाति के घोड़ों की सवारी का आनन्द लिया था। भारत में इन तीन जातियों के घोड़ों को प्रशंसनीय बतलाया गया है । आगम-साहित्य की टीकाओं में भी इन घोड़ों के नाम मिलते है। युद्ध की दृष्टि से ये घोड़े बहुत ही जीवट वाले, आज्ञाकारी, परम विश्वस्त एवं चतुर माने जाते थे। अश्वसेना के गठन के उद्देश्य से इन घोड़ों का बल्ख, तुर्क एवं वज्र देशों से नकद अथवा वस्तु-विनियम के आधार पर आयात किया जाता होगा । वसन्तपुर काशी एवं कोशल देश की सीमाओं पर मगध देश का सीमान्तवर्ती नगर रहा होगा, अतः वहाँ राजभवन एव सुरक्षा चाकियो आदि के साथ-साथ अश्वसेना, आयुधशाला एवं सैन्यागार की भी व्यवस्थाएं की गई होंगी। विशाखवर्धनपुर
पुरातत्ववेत्ताओं ने इसकी पहचान वर्तमान बिहारशरीफ से की है। समराइच्चकहा के सातवें भव में इस नगर का उल्लेख कर उसे कादम्बरी-गुफा के समीप बताया गया है । इतिहासकार बुशानन ने एक स्थानीय जैन अनुश्रुति के आधार पर लिखा है कि इस नगर की स्थापना पद्मादय नामक राजा ने तीसरी-चौथी सदी के आस-पास को थी। सन् १८२० ई० में पुरातत्त्वविद् कनल फ्रेंकलिन ने भी इस स्थल की यात्रा की थी तथा उनके साथ रहने वाले एक जन-पण्डित ने उन्हें बताया था कि उस स्थल का प्राचीन नाम विशाखपुर अथवा विशाखवर्धनपुर था, क्योकि उसकी स्थापना उग्रवंशी नरेश विशाख ने की थी। सन्दभित जैन-पण्डित के अनुसार यह राजा विशाख राजगृही नरश श्रेणिक का समकालीन था। इन अनुश्रुतियों से यह विदित होता है कि उक्त नगर प्राचान है तथा उसकी स्थापना सम्भवतः ईसापूर्व छठवीं सदी से ईस्वी सन् की चौथी सदी के मध्य कभी की गई होगी। वस्तुतः इस विषय में शोध-खोज की आवश्यकता है।
१. दे० वही पृ० १।१७ । २. दे० वही पृ० १११८ । ३. दे० वही पृ० १।३० तथा आदिपुराण (जिनसेन)। ४. दे० Antiquarian Remains is Bihar (D. R. Patil) Patna, Page 44-45.
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