Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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एक उद्भट निर्भीक विद्वान् का वियोग
पं० भवर लाल न्यायातीर्थ* यह समाचार बड़े दुःख के साथ सुना गया कि दि० जैन समाज के प्रख्यात उद्भट विद्वान् लेखक, चिन्तक, सम्पादक, मार्ग दर्शक, निर्भीक वक्ता पं० कैलाश चन्द जी शास्त्री बनारसवालों का गत १७ नवम्बर, ८७ को दिन के १२ बजे निधन हो गया। वे कर्मठ विद्वान् थे, दर्शन के चोटी के जानकार थे, निष्पक्ष निर्भीक लेखक और वक्ता थे। माँ सरस्वती की उपासना में अपना सारा जीवन लगाया। वे स्याद्वाद महाविद्यालय के स्नातक, आचार्य एवं अधिष्ठाता रहे। जीवन भर संस्था से जुड़े रहे, अनेक विद्वान् तैयार किये । पुरानी पीढ़ी के वे ठोस तलस्पर्शी विद्वान् थे। ऐसे विद्वान् के वियोग से किसे दुःख न होगा।
गत कई दिनों से आप अस्वस्थ थे और अपने पुत्र श्री सुपार्श्व कुमार के पास रांची में रहकर इलाज करा रहे थे। काफी इलाज और सेवा-सुश्रूषा के बाद भी वे बच नहीं सके और करालकाल के चपेट में आ ही गये । जिसने सुना शोक मग्न हो गया।
पंडित जी का जन्म कार्तिक शुक्ला द्वादशी सन् १९०३ को नहटोर कस्बे (बिजनौर जिला) में हुआ । सन् १९१५ में स्याद्वाद महाविद्यालय बनारस में पढ़ना प्रारम्भ किया। गोपाल जैन सिद्धान्त विद्यालय से शास्त्री किया और सन् १९२३ में बनारस विद्यालय में धर्माध्यापक बन गये। सन् १९२७ में स्याद्वाद महाविद्यालय से जुड़े सो आजीवन ही जुड़े हुए रहे । आपका सारा कार्य क्षेत्र यह विद्यालय रहा।
आपने अनेक उच्च कोटि के ग्रन्थ, पुस्तकें लिखीं। जैन धर्म आपकी सबसे विख्यात पुस्तक है जो कई जगह पाठ्य-पुस्तक के रूप में है।
पूज्य पंडित जी से मेरा सम्पर्क तब हुआ, जब दि० जैन संघ का पत्र "जैन दर्शन" निकलता था और पूज्य पंडित जी चैनसुख दास जी और पं० कैलाश चन्द जी शास्त्री उसके सम्पादक थे। मैटर जयपुर से तैयार होता था। पूज्य पं० चैनसुखदास जी के पादमूल में बैठकर मैं लिखापढ़ी करता था। बाद में तो कई बार आपसे मुलाकात हुई और अनेक बार सुना, चर्चा-वार्ता हुई। बड़ा आनन्द आता जब किसी विषय पर दो चोटी के विद्वानों परस्पर में वार्तालाप होता था।
आपका धार्मिक ऐतिहासिक ज्ञान भी विशाल था आप आर्षमार्ग के समर्थक थे कभी आगम और आर्षमार्ग के खिलाफ तनिक सी बात भी आपको सह्य नहीं थी। कैसा * सम्पादक, वीर-वाणी, मनिहारों का रास्ता, जयपुर-३ ।
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