Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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( १३ )
तीमारदारी करे—उनकी खबर ले। यह बात अलग है कि उनके सुपुत्र आदि सम्बन्धी
और कुछ पास-पड़ोसी उनकी सेवा करते रहे हों, पर अखिल जैन समाज और खासकर समर्थ और नेता टाइप समाज का यह परम कर्तव्य था। हम नहीं जानते कितनों ने पंडित जी की तीमारदारी में योग दिया और उनकी बीमारी में उनकी सुध ली। कितनों ने उनके उपकारों को सही रूप में माना ? इसे वे ही जानें ? वरन, समाज के रवैये के प्रति हमारा तो वैसा ही अनुभव है जैसा कि पंडितजी ने कहा था-हम यूं ही मर मिटेंगे, तुमको खबर न होगी' । पण्डितजी चले गये और हमें खबर तक भी न हुई और हुई तो बड़ी देर से-कछुए की चाल से ।
इस प्रसंग में समाज अपने अतीत को भी देखे कि उसने अतीत के अनगिनत उपकारियों के प्रति कैसा रवैया अपनाया ? भले ही समाज ऐसी हस्तियों को उनके प्रति उनके जीवन काल में उन्हे अभिनन्दन देता रहा है।
उनके जयकारें बोल-माल्यार्पण करता रहा हो उसने उनसे कुछ ग्रहण नहीं किया, और जो उन्हें दिया वह अन्तिम दिनों उनके काम न आया। यदि अभिनन्दन ग्रन्थ आदि ही से सब कुछ काम हो जाता होता, तो क्यों नहीं बीमार के सिरहाने वे रख दिये जाते ? जिनसे बीमार की तीमारदारी हो जाय और कोठिया आदि जैसे प्रवृद्धों को तीमारदारी के प्रति चिंतित न होना पड़े। अस्तु ।
___ यह भी सोचने की बात है कि पण्डितजी जैसी धार्मिकता, निर्भीकता, निःस्वार्थता कितनों में है और कितनों में धर्म के प्रति वैसे समर्पण के भाव हैं जैसे उनमें थे ? पण्डितजी धर्म के सही विवेचन करने में कभी चूके नहीं—'कह दिया सौ बार उनसे जो हमारे दिल में है। ऐसे पंडितजी को हमारे शत-शत नमन' ।
देखना यह भी होगा कि भविष्य में कितने नवीन पंडित अपने को पंडितजी के रूप में ढाल पायेंगे ? आशा तो नहीं कि केवल आजीविका की दौड़-धूपवाले पंडित पंडितजी की पंडित-परम्परा को जीवित रखने में समर्थ हो सकेंगे? और यह भी आशा नहीं कि केवल नेता टाइप लोग पंडितों की कद्र कर सकेंगे-सभी अपने-अपने स्वार्थों में लगे हैं। आज तो कई मुनियों का यह हाल है कि त्याग के स्थान पर संग्रह में और तप के स्थान पर जनता के हित के नाम पर, चिन्ताओं में तप रहे हैं। ऐसे में कैसे और किन से पूरा हो सकेगा, पंडितजी का मिशन ?
हमारा विश्वास है पंडितजी का मिशन तभी पूरा होगा, जब पंडित निःस्वार्थी होंगे, धनिक जरा पंडितों की सुख-सुविधा के ध्यान रख उन्हें मान देंगे और त्यागी-मुनि आदि सामाजिक प्रवृत्तियों से दूर-अपनी आत्मा-साधना में लगे रहेंगे ।
हम अपने मन्तव्य को इन शब्दों के साथ पूरा करते हैं कि हम सब पंडित जी के आदर्श पर चलें और जो कुछ करें, धर्म समझ कर धर्म के लिए करें। वीर सेवा मंदिर परिवार पंडितजी के प्रति श्रद्धावनत हैं ।
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