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ॐ नमः सिद्धेभ्यः। अथ प्रथम प्रस्ताव।
हेप्टातकथा।
स लोकमें एक अष्टमूलपर्यन्त नामका बड़ा भारी
नगर है, जो अनादिकालसे अनन्त जीवोंसे भरा ANA हुआ है और सदा ऐसा ही रहेगा । यह नगर
बादलोंके बराबर ऊंचे और मनको हरण करनेवाले
महासे सघन हो रहा है, जिनके आदि अन्तका कुछ पता नहीं है; ऐसे बड़े २ बाजारोंसे सुशोभित हो रहा है, अपार तथा बड़े २ विस्तारवाली विक्रीकी चीजोंसे भर रहा है, और उनमें सबसे अधिक कीमती जो रत्न हैं, उनके करोड़ोंके ढेरोंसे व्याप्त हो रहा है। विचित्र २ प्रकारके सुन्दर चित्रोंकी रचनासे शोभित हजारों देवमन्दिरोंसे जिनपर कि बालकोंके हृदय आकर्पित हो रहे हैं और देखनेवालोंके नेत्र स्थिर हो रहे हैं, वह बहुत ही शोभित होता है। और वाचाल वालकोंके मनोहर कलकल शब्दसे शब्दमय हो रहा है।
वह नगर चारों ओरसे एक अलंध्य और ऊंचे कोटरूपी चूड़ेसे (वलयसे ) घिर रहा है। उसकी मध्यभागकी गभीरताका (वि
१. टान्तकी प्रत्येक बात अच्छी तरहसे विचार करके यांचना चाहिये । आगे दान्तमें यहांकी फही हुई राय वातें घटित की जावेगी। उस समय इस विषयी सूची समसमें आवेगी।
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