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और पहले कहा है कि, " वह भिखारी उस अदृष्टमूलपर्यन्त नगरके ऊंचे नीचे घरोंमें, तिराहों चौराहों तथा आंगनों में और नानाप्रकारकी गलियोंमें निरन्तर विना थकावटके भ्रमण करता हुआ अनन्त वार घूमा है ।" सो इस जीवके विषयमें भी वैसा ही समझना चाहिये । क्योंकि काल अनादि है, इसलिये इस जीवने भी भ्रमण करते हुए अनन्त पुद्गलपरावर्तन' पूर्ण कर डाले हैं (और इस बीचमें इसने ऊंचे नीचे गोत्रोंमें नाना गतियोंमें और अनेक योनियोंमें अनन्त वार भ्रमण किया है।) और जैसे वहां कहा है कि, “उस भ्रमण करते हुए दरिद्रीका उस नगरमें न जाने कितना समय बीत गया है" उसी प्रकारसे इस जीवको संसारमें भ्रमण करते हुए कितना काल बीत गया है, इसकी गिनती इन्द्रियज्ञानके गोचर नहीं है - अर्थात् वीते हुए समयकी गणना नहीं हो सकती है। काल अनादि है, इसलिये उसका माप नहीं हो सकता है।
इस प्रकारसे संसाररूप नगर में यह मेरा भिखारीरूप जीव कुविकल्प कुतर्क कुतीर्थरूप उपद्रवी तथा दुर्दमनीय लड़कोंके द्वारा अपने तत्त्वोंके सन्मुख होनेवाली वृत्तिरूपी देहमें विपर्यय ( मिथ्यात्व ) करनेरूप ताड़नाओंसे क्षणक्षणमें चोटें खाता हुआ महामोहादिरूप रोगोंसे ग्रसित होता है और उनके कारण नरकादि पीड़ा देनेवाले स्थानोंमें बड़ी भारी पीड़ाके होनेसे स्वरूपभ्रष्ट हो जाता है । और इसलिये जिनके चित्त विवेकबुद्धिसे निर्मल हो रहे हैं, उनको इसपर दया आती है। आगे पीछेका विचार नहीं कर सकने के कारण
१ अनंतानंत पुद्गलोंको क्रमसे अनंत वार ग्रहण करना और छोड़ना इसको एक पुद्गलपरावर्तन वा द्रव्यपरावर्तन कहते हैं । जीवने ऐसे २ अनन्त परावर्तन किये हैं ।