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यह तत्वज्ञान से बहुत दूर रहता है, इस लिये सब जीवों से अतिशय जपन्य अर्थात् नीना है, और नीचा ना तुच्छ होनेके कारण धन विषयादिरूप कुभोजनकी सूदी भाशाकी फांसीमें उलझा रहता है
और कभी योदामा भी लाभ हो जानेसे संतुष्टसा हो जाता है, परंतु फिर भी तत नहीं होता है । उसके उपार्जनमें बहानेमें,और रखवाली करनेमें अपने नित्तको लगाये रहता है और उससे सघन तथा बड़ी भारी स्थिनिताले आठ प्रकार के कर्माका हानिकारक अपथ्य पाथेय बोधता है, निसा कि उपभोग करनेसे बढ़ते हुए रागादि रोगोंसे पीड़ित होता है। इतने पर भी विपर्यस्तनित्त (मिथ्याती) होनेके कारण उमाको निरन्तर भोगता है और सम्यक्तारित्ररूप खीरके भोजनका लाद न पाकर अरहटकी ( रहँटकी) घड़ियोंके समान.स. पृशं योनियों में जन्म धारण कर करके अनन्त पुनलपरावर्तनरूप भरण करता है। (अभीतक भिखारी और जीवकी समानताके विषयमें जो कुछ कहा गया है, उसका यह सारांश है।) . अब आगे दम जीनका क्या हुआ, सो कहते हैं:
मृचना-इस कथाका सम्बन्ध भूत भविष्यत और वर्तमान तानों सालासे है। इसलिये इस सारे ग्रन्थमें कहनेवालेकी इच्छाके अनुसार तीनों ही कालोका ज्ञान करानेवाले प्रत्ययोंका प्रयोग किया गया है, अनि जहां मिस कालसम्बन्धी प्रत्ययकी आवश्यकता समझी गई है, वहां नही प्रत्यय प्रयुक्त किया गया है, सो उचित समझना चाहिये।
गलेगा-गुमारिरीने साया मानेयाला भोजन । २ अरहट यंत्रमें जो गलियां लगी हुई है, उनमेंगे जय ऊपरफी एक साली होती है, तय नीकी मर जाता है। इसी प्रकारसे जीप एक शरीर छोता है और स्वारा धारण करता है।