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क्यों कि जैसे कहनेवालेकी इच्छाके अनुसार एक ही प्रकारकी वस्तुओंमें उन वस्तुओंकी स्थितिके अनुसार कारक' अनेक प्रकारसे प्रयोग किया जाता है, वैसे ही काल भी किया जाता है। ऐसा अनेक स्थानोंमें देखा है, और इसे व्याकरणशास्त्रके जाननेवाले भी ठीक समझते हैं। जैसे पटनाके जानेका जो रास्ता है, उसमें एक कुआ 'था' 'पहले हुआ' 'अब हुआ' 'होगा' और 'कल होगा ' ये सब कालके रूप एक ही कुवाके विषयमें दिये गये हैं, परन्तु जुदी २ विविक्षासे सब ठीक हैं । इस विषयमें और अधिक कहना अनावश्यक है।
उसै नगरमें अपने स्वभावसे ही सब प्राणियोंपर गो-वत्स सरीखी प्रीति रखनेवाले और प्रख्यातकीर्ति जो सुस्थित नामके महाराजावतलाये गये हैं, सो इस संसारनगरमें परमात्मा-जिनेश्वर-सर्वज्ञ भगवान्को समझना चाहिये । क्योंकि दुःखोंका नाश हो जानेसे, अनन्तज्ञान अनन्तदर्शन और अनन्तवीर्य प्रगट होनेसे, तथा उपमारहित स्वाधीन और अतिशय आनन्दस्वरूप होनेसे वास्तवमें वे ही सुस्थित हो सकते हैं। अज्ञान आदि क्लेशोंके वशवर्ती जो दूसरे देवआदि हैं, वे अत्यन्त दुःस्थित रहते हैं, आकुलता सहित रहते हैं, इसलिये 'सुस्थित' नहीं हो सकते हैं। वे ही भगवान् सारे जीवोंकी रक्षा करनेका सूक्ष्मसे सूक्ष्म विचारयुक्त उपदेश देते हैं, तथा प्रशंसनीय मोक्षको प्राप्त करा देनमें तत्पर रहनेवाले शास्त्रोंकी रचना करते हैं, इसलिये स्वभावसे ही अतिशय वत्सलहृदय हैं। और वे ही सम्पूर्ण देवों तथा मनुष्योंके नायक इंन्द्र और चक्रवर्ती आदिके द्वारा प्रख्यातकीर्ति • १ विविक्षानुसारेण कारकप्रवृत्तिः (सिद्धान्तकौमुदी)
२ इस कथनका सम्बन्ध पृष्ठ १८ के दूसरे पारिग्राफसे है।