________________
आगे राजमंदिरमें जो स्थविरा अर्थात् वृद्धस्त्रियां कही गई हैं, उन्हें जिनेन्द्रशासनमंदिरकी आर्याएं ( अर्जिकाएँ ) समझना चाहिये । पहले राजमंदिरकी स्थविराओंको उन्मत्त स्त्रियोंके निवारण करनेमें तत्पर और विषयवासनाओंसे रहित बतलाई हैं, सो उनके ये दोनों अनुपम गुण आर्यिकाओंमें भी घटित होते हैं। क्योंकि वे प्रमादके कारण विवश होकर धर्मकार्योंमें शिथिल रहनेवाली धावकोंकी त्रियोंको और अपनी शिष्याओंको अपने परोपकार करनेके व्यसनके कारण जो कि उन्हें हमेशासे पड़ा हुआ है भगवानके आगममें कहे हुए और महानिर्जराके करनेवाले सघमिवात्सल्यकी पालना करती हुई स्मारण ( याद दिलाकर ), वारण ( रोककर ), प्रेरण (कहकरके) और प्रतिप्रेरण ( वार २ कहके ) इन चार द्वारोंसे कुमार्गमें जानेसे बचाती हैं । और विषयरूपी विपके सेवन करनेका परिणाम कैसा बुरा होता है यह जानती हैं, इस लिये उन विषयोंसे चित्तको हटाकर संयममें रमण करती हैं, अनेक प्रकारके तपोंके साथ क्रीडा करती हैं, निरंतर स्वाध्याय करनेमें प्रसन्न रहती हैं, प्रमादोंका सेवन नहीं करती हैं और किसी प्रकारकी शंका किये विना आचार्योंकी आज्ञाका पालन करती हैं। __ तथा पहले कहा है कि, " राजभवन सुभटोंसे खचाखच भर रहा है।" सो यहांपर भगवानके शासनभवनमें श्रावकोंको सुभटसमूह समझना चाहिये। क्योंकि एक तो वे बहुत ज्यादा हैं, इसलिये सारे शासनमंदिरको व्याप्त किये रहते हैं। कारण देवोंमें असं. ख्यात, मनुप्यो संख्यात, तिर्यञ्चोंमें अनेक, और नरकोंमें बहुतसे श्रावक हैं। और दूसरे वे अपनी शूरता, उदारता, और गंभीरता आदि गुणोंसे जैनशासनके शत्रु मिथ्यातीनीवरूप योद्धाओंको पराजित
सारे शासनमा संख्यात, तिया उदारता, और ग पराजित