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कोई वचन नहीं है जिसे यह नहीं बोलता है, और ऐसा कोई कार्य संभव नहीं है, जिसे यह नहीं विचारता है। इस प्रकार धनके लिये इधर उधर निरन्तर भ्रमण करता हुआ भी यह पूर्वपुण्यरहित जीव जितना धन चाहता है, उसमेंसे तिल तुप मात्रका तीसरा हिस्सा भी नहीं पा सकता है। केवल अपने चित्तके संतापको, आर्तरौद्र ध्यानके कारण गुरुतर (अधिक स्थितिवाले) कर्मोंको और उनके द्वारा अपनी दुर्गतिको बढ़ाता है।
यदि कभी पूर्वजन्मका किया हुआ कुछ पुण्य होता है, तो उसके उदयसे यह जीव हजार दश हजार लाख दश लाख रुपया, अथवा प्यारी स्त्री, अथवा अपने शरीरकी सुन्दरता, अथवा विनयवान कुटुम्ब, अथवा धान्यका संग्रह, अथवा दो चार गांवोंका स्वामीपन, अथवा थोड़ा बहुत राज्यादि प्राप्त लेता है । और तब जिस प्रकार वह भिखारी जरासे कदन्नको पाकर गर्वमें आगया था, उसी प्रकारसे यह जीव भी मतवाला हो जाता है और मदरूपी सन्निपातसे ग्रसित होने के कारण किसीकी प्रार्थना नहीं सुनता है, दूसरे लोगोंकी ओर देखता नहीं है, गर्दनको झुकाता नहीं है, मीठे वचन बोलता नहीं है, विना ही समयके आंखें मीचता है-ऊंघता है, और गुरु
ओंका अपमान करता है । अतएव इस प्रकारके ओछे अभिप्रायोंसे जिसका निजस्वरूप नष्ट हो गया है ऐसा यह जीव, सम्यग्ज्ञानादि रत्नोंसे भरपूर होनेके कारण जो परम ऐश्वर्यशाली हैं, ऐसे ज्ञानी मुनिराजोंको क्षुद्र भिखारीसे भी अधम क्यों न प्रतिभासित होवे ? होना ही चाहिये। . और जब यह जीव पशु शरीरको तथा नरकायुको धारण करता है, तब तो भिखारीकी भी उपमाको लंघन कर जाता है अर्थात् भिखा