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शब्द किये हुए जाकर उसमें अपनी सम्पतिको गढ़ाता है, फिर उस गड्ढेको पूरकर जमीनको वरावर कर देता है, तथा ऊपर धूल कचड़ा आदि डाल देता है । इस तरह कोई मनुष्य जान न सके, ऐसी सावधानीसे यह कार्य सम्पादन करता है । परन्तु तत्काल ही यह विचार करके कि, कहीं मैं स्वयं ही इसे नहीं पहिचान सका तो ? उस स्थानपर नानाप्रकारके चिन्ह कर देता है। दूसरे कार्योंके लिये उस स्थानपरसे जाते हुए लोगोंकी ओर वारवार देखता है और यदि कभी किसी मनुप्यकी दृष्टि उस ओर जाती है, तो डर जाता है और "हाय ! इसने तो जान लिया," ऐसा समझकर तीन मोहसे जलता हुआ रातभर नींद नहीं लेता है। वीचमें ही उठकर उस स्थानपर जाता है, उस धनको खोदकर निकाल लेता है और दूसरे किसी स्थानमें फिर गढ़ा देता है । उस समय भयके मारे चारों दिशाओंकी ओर अपनी दृष्टिको फेंकता जाता है (कि, कहीं कोई देखता तो नहीं है) और मुझे कोई देख लेगा, इस चिन्ताके कारण वह जो दूसरी हलन चलनादि क्रियाएं करता है, वे भी केवल शरीरसे करता है। क्योंकि मन तो धनके बंधनमें ऐसा जकड़ा हुआ होता है कि, उस स्थानसे दूसरे स्थानको एक पैर भी नहीं चल सकता है । इस प्रकार सैकड़ों उपायोसे रखाया हुआ भी वह द्रव्य कोई न कोई देख लेता है, और निकाल ले जाता है। तब विना समयके वज्र पड़नेसे जैसे किसीका शरीर दलित हो जाता है, उसके समान होकर 'हाय माता ! हाय पिता! हाय भाई।' इसप्रकार त्रिललाता हुआ सारे ज्ञानी जनोंके चित्तोंको दयासे ब्याप्त कर देता है । अथवा अतिमू रूप व्याघ्रके भक्षण किये जानेसे अर्थात् शोकके कारण अतिशय मूर्छित हो जानेसे मर जाता है।
इस प्रकार थोड़ेसे धनमें जिनके चित्तकी वृत्तियां उलझी हुई रहती हैं, उनकी चेष्टाओंका संक्षेपरूप वर्णन किया ।