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इसी प्रकारसे जब इस जीवको अपनी स्त्रीकी रक्षा करनेरूप ग्रह ग्रसित करता है, और ईर्पारूप शल्य जब इसके हृदयमें चुभती है, तब दूसरा कोई मेरी स्त्रीको देख नहीं लेवे, ऐसी दृष्टि रखता हुआ घर से बाहर नहीं निकलता है, रातको सोता नहीं है, माता पिताको छोड़ देता है, कुटुंबीजनों के स्नेहको शिथिल कर देता है, अपने प्यारेसे भी प्यारे मित्रको घरमें नहीं आने देता है, धर्मकार्यो का निरादर करने लगता है, लोग निंदा करेंगे, इसकी कुछ परवाह नहीं करता है, केवल उसीके मुंहको निरन्तर देखा करता है, और उसीको परमात्माकी मूर्ति मानकर योगीके समान सारे व्यापारोंको छोड़कर ध्यान किया करता है । वह जो कुछ करती है, उसीको सुंदर मानता है, जो कुछ वह बोलती है, उसीको आनन्दकारी मानता है, वह जो कुछ विचार करती है, उसीको उसकी चेष्टाओंसे जानकर पूर्ण करने योग्य समझता है । फिर मोहसे विडम्बित होकर सोचता है कि, यह मुझपर प्यार करती है, वाली है, संसारमें इसके समान सुंदरता, उदारता, गुणों से सुंदर स्त्री और कोई नहीं है ।
मेरा हित चाहने और सौभाग्यादि
यदि कभी कोई परपुरुष माता समझकर, वहिन मानकर और देवी जानकर ही उसकी ओर देखता है, तो भी यह जीव मोहके वा मूर्खताके कारण अतिशय क्रोधित, विव्हलचित्त, मूच्छित और मरते पुरुषके समान क्या करना चाहिये, इसका विचार नहीं कर सकता है । और यदि कभी उस खीसे वियोग हो जाता है, अथवा वह मर जाती है, तो यह रोता है, विलखता है, अथवा मर भी जाता है । यदि कभी दुःशीलताके कारण वह परपुरुषगामिनी वा व्यभिचारिणी हो जाती है, अथवा राजा आदि दूसरे पुरुष उसे बलपूर्वक छीन लेते
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