________________
७६
शरीरोंको उठाता है, और उनके मांसको विखराता है, इस तरह नीच जातिके वेतालोंको (प्रेतोंको ) साधता है, और उनके क्रोधित होनेपर अन्तमें मारा जाता है.। कभी खन्यवाद अर्थात् खनिजविद्याका अभ्यास करता है, और उससे धनके लक्षणोंवाली भूमिका निरीक्षण करता है, यदि कहीं कुछ मिल जाता है, तो उसको देखते ही संतुष्ट होता है, उसके ग्रहण करनेके लिये रातको जीवोंकी बलि देता है, परन्तु जब उस धनके हंडे में जलते कोयले भरे हुए पाता है, तो बहुत ही दुखी होता है । कभी धातुवादका अनुशीलन वा अभ्यास करता है, धातुवादियोंकी भेंट करता है-सुश्रूपा करता है, उनके उपदेशको ग्रहण करता है, वहुतसी जड़ी बूटियोंको एकत्र करता है, धातुओंकी मिट्टी (धाऊ) लाता है, पारेको समीप रखता है, उसके जारण (जलाना), चारण ( उड़ाना) और मारण करनेमें कष्ट पाता है, रातदिन धोंकता है, घड़ी घड़ीमें चिलाता है, पीले तथा सफेद होनेकी थोड़ीसी भी सिद्धि देखकर हर्पित होता है, रातदिन आशाके लड्डु खाता है, और इस क्रियामें अपने पास जो थोड़ा बहुत धन बचा हुआ होता है, उसको भी खर्च कर देता है, और अन्तमें जब यह सोना चांदी वनाना सिद्ध नहीं होता है, तब इसके विभ्रमसे अथवा पागलपनसे मर जाता है। ___ कभी विषयभोगोंकी प्राप्ति हो सके, इसलिये यह जीव धन चाहता है और उसके लिये चोरी करता है, जूआ खेलता है, यक्षिणीकी आराधना करता है, मंत्रोंका जपन करता है, ज्योतिपकी गणना करता है, निमित्त मिलाता है, लोगोंके चित्तोंका आकर्षण करता है,
और सारी कलाओंका अभ्यास करता है; अधिक कहनेसे क्या ऐसा कोई कार्य नहीं है, जिसे धनके लिये यह जीव नहीं करता है, ऐसा