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राजाके आंगन में इन तीनों भेपजोंको एक बड़ी भारी कठौती में (लकडीके पात्र में रखकर तुझे विश्वास करके एक ओर बैठ जाना चाहिये । ऐसा करनेसे जो लोग तेरी दरिद्रताका स्मरण करके तेरे पाससे औपधियां नहीं लेते हैं परन्तु यथार्थमें उन्हें चाहते हैं, वे शून्य स्थान देखकर स्वयंले ले वेंगे । यदि कोई एक ही गुणी पुरुष ये औषधियां ग्रहण कर लेगा, तो मैं समझती हूं कि, उससे तू तर जायगा । क्योंकि ऐसा कहा है कि गुणियोंमें कोई पात्र ज्ञानमयी होते हैं और कोई तपोमयी होते हैं। सो इनमेंसे जो पात्र (ज्ञानमयी, दर्शनमयी) आवेगा, वहीं तुझे तार देगा ।"
सद्बुद्धि के वचनोंकी चतुराईसे सपुण्यकने बहुत ही आनन्दित होकर उसीके वचन के अनुसार कार्य किया । इस विपयमें अब ग्रन्थकार कहते हैं कि:
" ऐसे दरिद्रीकी बतलाई हुई भी औषधियां जो मनुष्य ग्रहण करेंगे, वे नीरोगी हो जावेंगे। क्योंकि नीरोग होने में ये तीनों औपधियां ही कारण हैं ।"
ग्रहण करनेमें जो स्वभावसे ही दयालु हैं, ऐसे सत्र ही लोगोंको यहां जितना विषय कहा गया है, उसको कृपा करके धारण करना चाहिये । इस प्रकार संक्षेप रीति से यह दृष्टान्त कहा गया । अव आगे जो उपनय ( दान्त ) कहा जावेगा, उसे सुनो:
संक्षिप्त दाष्टन्ति ।
कथामें जो अदृष्टमूलपर्यन्त नामका नगर कहा गया है, उसे जिसका छोर नहीं दिखलाई देता है, ऐसा 'विस्तृत संसार समझना चाहिये । महामोहसे हते हुए, अनन्त दुखोंसे पीड़ित होते.
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