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निरन्तर भ्रमण किया करता है । और उसके पास जो भीख रखनेके लिये फूटे घड़ेका ठीकरा वतलाया है, सो इस जीवकी आयु समझनी चाहिये । क्योंकि यह आयुरूपी ठीकरा ही इस जीवके विषयरूपी बुरे अन्न आदिका तथा सम्यक्चारित्ररूप महाकल्याणक आदि दिव्य पदार्थोंका आश्रय है। अभिप्राय यह है कि, जब आयु होती है, तब ही विषय सेवनादि वा चारित्र पालनादि कार्य होते हैं । इन सबका आधार आयु है। इस आयुरूपी ठीकरेको लेकर ही यह जीव संसार नगरमें वारवार भ्रमण करता है। __ और जो उस भिखारीको लकड़ी मुक्कों तथा बड़े २ ढेलोंकी चोटोंसे क्षण क्षणमें ताड़ना करनेवाले और शरीरको जरजरा करनेवाले दुर्दमनीय लड़के बतलाये हैं, सो इस जीवके नाना प्रकारके बुरे विकल्प, उनके उत्पन्न करनेवाले कुतर्कग्रंथ, अथवा उनके बनानेवाले कुर्तार्थिक (कुगुरु) समझना चाहिये । वे जव जव इस वेचारे जीवको देखते हैं, तब तब कुयुक्ति (हेत्वाभास) रूप सैकड़ों मुद्गरोंकी मारसे इसके तत्त्वाभिमुखरूप शरीरको जर्जरा कर डालते हैं। अभिप्राय यह है कि, कुगुरुओं वा कुग्रंथोंकी खोटी युक्तियों से वास्तविक तत्त्वोंके सम्मुख होनेवाली श्रद्धा नष्ट हो जाती है। फिर जब उनके हेत्वाभासोंसे तत्त्वाभिमुखरूप शरीर जर्जर हो जाता है, तब यह जीव कार्यका विचार नहीं कर सकता है, भक्ष्य क्या है और अभक्ष्य क्या है, पीने योग्य (पेय ) क्या है और नहीं पीने योग्य (अपेय ) क्या है, इसके स्वरूपको नहीं समझता है, छोड़ने योग्य
१ मिथ्यात्व, सम्यमिथ्यात्व, सम्यक्त्वमोहनीय ये तीन दर्शनमोहनीयके और १६ कपाय और हास्य रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसकवेद ये ९ नो कपाय, इस तरह २५ चारित्र मोहनीयके भेद हैं ।