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निरन्तर प्रवर्तमान मदनरसके वशमें होकर बहुत समय तक सुरत ' - क्रीड़ासे स्पर्शनेन्द्रियको प्रसन्न करूंगा, कभी रसनेन्द्रियको सन्तुष्ट करने के लिये सारी इन्द्रियोंको स्वस्थ करनेवाले तथा वल देनेवाले मनोज्ञ रसका स्वाद लूंगा, कभी अतिशय सुगंधित कपूर मिले हुए चन्दन, केशर और कस्तूरीका विलेपन करके पांच प्रकारकी सुगंधिसंयुक्त ताम्बूलका स्वाद लेने के बहाने नासिका इन्द्रियको तृप्त करूंगा, कभी ऐसे नाटकों को देखकर जिनमें कि निरन्तर मृदंगों की ध्वनि होती है, देवांगनाओंका भ्रम उत्पन्न करनेवाली सुन्दर स्त्रियां जिन्हें खेलती हैं, नानाप्रकारके वेप जिनमें धारण किये जाते हैं, और अंगहार नामक नृत्यसे जो मनको हरण करता हैं नेत्रोंको आनन्दित करूंगा, कभी मधुर कंठवाले और गायनविद्या के प्रयोगोंको अच्छी तरहसे जाननेवाले गंध वांसुरी, वीणा और मृदंगों के साथ गाये हुए सूक्ष्म गधुर और अस्पष्ट ध्वनिसंयुक्त गीतोंको सुनकर कानों को आल्हादित करूंगा और कभी सारी कलाओं के जाननेवाले, समान अवस्थाबाले (हमउमर ), अपना हृदयसर्वस्व सौंप देनेवाले अर्थात् परस्पर किसी से कुछ छुपा न रखनेवाले, उत्कृष्ट, शुरता, उदारता और पराक्रमवाले, और सुन्दरता में कामदेव के भी रूपपर हँसनेवाले मित्रोंके साथ नाना प्रकारकी क्रीड़ा करता हुआ सारी इन्द्रियोंको आल्हादित करूंगा ।" इन सब विचारोंको उस भीखको एकान्तमें खाने की इच्छा के समान समझना चाहिये ।
फिर विचार करता है कि, "इस प्रकार से बहुतकाल तक परमोत्कृष्ट सुख भोगते रहने पर मुझे ऐसे सैकड़ों पुत्र प्राप्त होंगे, जिनका स्वरूप देवकुमारों सरीखा होगा, जो शत्रुओंकी स्त्रियोंके हृदय में दाह
१ श्री-संभोग । २ जिस नृत्य में अंगुलियां तथा दूसरे अंग मटकाये जाते हैं।