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विस्तृत दान्त |
(उपनयन)
त
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त्वज्ञानी पुरुषोंका यह मार्ग है कि, वे निरन्तर अपना और दूसरोंका कल्याण करनेमें दत्तचित्त रहते हैं, इसलिये उनके मनमें कोई निष्प्रयोजनीय ( वेमतलब के) विकल्प नहीं उठते हैं। यदि कभी अज्ञात अवस्थामें उठते हैं, तो भी वे कभी विना कारणके नहीं बोलते हैं । और यदि कभी तत्त्वज्ञानको नहीं जाननेवाले मूर्ख पुरुषोंके साथ रहनेसे विनाकारणका ( निर्निमित्तक) बोल जावें, तो भी वे विना कारणकी कोई चेष्टा नहीं करते हैं अर्थात् उनके उस विनाकारण बोलनेका भी कोई न कोई कारण अवश्य रहता है । यदि ऐसा न हो, अर्थात् वे विनाकारणकी चेष्टा करें, तो फिर अतत्त्वज्ञ (अज्ञानी) पुरुषोंमें और उनमें कुछ विशेषता ही नहीं रहे और ऐसा होनेसे उनकी तत्त्वज्ञता ही नष्ट हो जाय । इस लिये तत्त्वज्ञानियोंमें अपनी गणना करानेकी इच्छा रखनेवाले सत्र ही जीवोंको अपने विकल्पोंकी, बोलनेकी और आचरण करनेकी सार्थकता यत्न - पूर्वक चिन्तवन करना चाहिये, अर्थात् ऐसा उपाय करना चाहिये जिससे अपने कोई विचार, वचन तथा आचरण निष्प्रयोजन वा निरर्थक न होवें, साथ ही उस सार्थकता के जाननेवालोंके समक्ष प्रगट करना चाहिये जिससे कि यदि कोई अपने निरर्थक विचारों वचनों और