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लोगोंकी स्पर्शेन्द्रियको प्रमुदित करता है और चित्तमें प्रीति उत्पन्न करनेवाले तथा जिन्हाको आनन्दित करनेवाले भोजनोंसे सम्पूर्ण प्राणियोंको स्वस्थ करता है।
इस प्रकार उस राजमहलको सारी इन्द्रियोंकी संतृप्तिका कारण देखकर वह भिखारी " वास्तवमें यह क्या है?" इस प्रकार विचार करता हुआ विस्मित हो गया । यद्यपि उन्मादके कारण वह रंक वास्तवमें उस राजमहलकी कोई विशेषता नहीं जान सका, तथापि जत्र उसे कुछ होश हुआ, तब उसके हृदयमें राजमहलसम्बन्धी स्फूर्ति हो आई । वह विचारने लगा कि, यह निरन्तर उत्सवपूर्ण रहनेवाला राजमहल जो आज मुझे द्वारपालके प्रसादसे देखनेको मिला है, मैंने पहले कभी नहीं देखा था । यद्यपि मैं पहले भ्रमण करता हुआ इस महलके द्वार तक अनेक वार आ चुका हूं, परन्तु यहांके महापापी द्वारपालोंने मुझे बरावर रोका है और कभी भीतर नहीं जाने दिया है । मैं सचमुच ही 'निष्पुण्यक' हूं, जो पहले कभी इस देवदुर्लभ महलको नहीं देख सका और न कभी देखनेके लिये मैंने कोई उपाय किया । अज्ञानतासे मेरी चेतना नष्ट हो रही थी, इस कारण और तो क्या मैंने कभी यह जाननेकी भी इच्छा नहीं की कि, यह राजमहल कैसा है? यह द्वारपाल मेरा परमवन्धु है, जिसने दया भावसे मुझ भाग्यहीनको भी यह चित्तको आल्हादित करनेवाला रमणीय महल दिखला दिया । ये लोग अतिशय धन्य हैं, जो इस राजमन्दिरमें सब प्रकारके कष्टोंसे रहित और प्रसन्नचित्त होकर सदा ही मौज करते हैं।
जिस समय वह चेतनायुक्त भिखारी इस प्रकार विचार कर रहा था, उसी समय एक नई बात हुई जो आगे कही जाती है: