________________
ऐसी असंभव घटनाको प्रत्यक्ष होती देखकर और उससे अचंभित होकर धर्मवोधकर उस समय चिन्तवन करने लगा कि, "यह क्या वात है, जो यह दरिद्री सुन्दर मीठे परमान्नको न तो ग्रहण करता है और न कुछ उत्तर ही देता है । मुंह फाड़ रहा है, नेत्रोंको वन्द किये हुए है और मानो अपना सर्वस्व ही खो चुका है, इस तरह ममत्ववश काष्ठकी खूटीके समान स्थिर हो रहा है । इससे मैं समझता हूं कि, यह पापी इस परमान्नके योग्य नहीं है। परंतु इसमें इस वेचारेका कुछ दोष नहीं जान पड़ता है। क्योंकि इसे वाहिर भीतर सत्र ओरसे रोगोंने घेर रक्खा है । और मैं समझता हूं कि उनकी पीड़ाऑसे अतिशय दुखी होनेके कारण ही यह कुछ नहीं जानता हैजड़ सरीखा हो रहा है । यदि ऐसा नहीं होता, तो यह बात कैसे हो सकती थी कि, यह चेतनायुक्त जीव होकर भी इस थोड़ेसे कुत्सित भोजनमें तो आसक्त रहता और अमृत सरीखे स्वादिष्ट भोजनको ग्रहण नहीं करता। हाय ! तो अब यह वेचारा निरोगी कैसे होगा ? क्या उपाय करूं ? हां, ज्ञात हुआ, मेरे पास इसे नीरोग . करनेकी तीन बहुत अच्छी औषधियां हैं।
उनमेंसे पहला तो विमलालोक नामका उत्तम अंजन है, जो सब प्रकारके नेत्ररोगोंको दूर कर सकता है और यदि वह विधिपूर्वक लगाया जावे, तो मैं समझता हूं कि, भूत और भविष्यतकालसम्बन्धी तथा सूक्ष्म और दूरवर्ती पदार्थोंको देखनमें वह मुख्य कारण होगा । अर्थात् इस अंजनके प्रसादसे वह सब कुछ देखने लगेगा। दूसरी औषधि तत्त्वप्रीतिकर नामका तीर्थजल है । वह सब . रोगोंको क्षीण कर डालता है। विशेष करके उन्मादको मिटाता है १ सुमेरु आदि।