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और विद्वानोंका कथन है कि, चतुरदृष्टि होनेका वह एक प्रधान उपाय है। और तीसरी औषधि यही महाकल्याणक नामका परमान है जो कि अभी इसके सम्मुख लाया गया है । यह सब ही प्रकारकी व्याधियोंको जड़से नाश कर सकता है। यदि विधिपूर्वक प्रयोग किया जाये, तो यह कान्ति, पुष्टता, धीरज, वल, मनकी प्रसनता, उत्साह, अवस्थाकी (उमर की स्थिरता, पराक्रम, और अजर अमरपना उत्पन्न करता है। इसमें सन्देह नहीं है । मैं संसारमें इससे अधिक अच्छी और किसी औषधिको नहीं समझता हूं। इस लिये अब मुझे इन औषधियोंका क्रमसे प्रयोग करके इस वेचारे रंकको व्याधियोंसे अच्छी तरहसे मुक्त कर देना चाहिये।" धर्मबोधकरने अपने नित्तमें इस प्रकारका निश्चय कर लिया।
इसके पीछे उसने शलाका (सलाई ) लेकर और उसकी नौकपर अंजन लगाकर भिखारीकी आखोम उसके यहां वहां गर्दन हिलाने और नेत्र बन्द करनेपर भी आंज दिया । यह विमलालोक अंजन आल्हादक (प्रसन्न करनेवाला ) था, ठंडा था, और अचिन्तनीय गुणवाला था। इसके लगानेके बाद ही निप्पुण्यकको फिर चेतना आगई-होश आगया । थोड़ी देरमें उसने नेत्र खोल दिये । उसके सारे रोग नष्ट सरीखे हो गये, और चित्तमें कुछेक आल्हादित होकर वह विचारने लगा कि, यह क्या हो गया? परन्तु पहले अभ्यासके कारण अपनी उस भीखकी रखवाली करनेके अभिप्रायको वह नहीं छोड़ सका । अर्थात् उसकी आकुलता उस समय भी उसे वनी रही । वह चिंता करने लगा कि, हाय । वह तो निर्जन स्थान हैदूसरा यहां कोई भी नहीं है, इस लिये कोई मेरी भिक्षा अवश्य ही ले नायगा, और फिर भाग जानेकी इच्छासे चारों दिशाओंकी ओर वारंवार दृष्टि दौड़ाने लगा।