Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्यवहारसूत्र का सम्पादन क्यों
संयमी आत्माओं के जीवन का चरम लक्ष्य है-'निश्यचशुद्धि' अर्थात् आत्मा की (कर्म-मल से) सर्वथा मुक्ति और इसके लिये व्यवहारसूत्र प्रतिपादित व्यवहार शुद्धिअनिवार्य है।
जिस प्रकार शारीरिक स्वास्थ्यलाभ के लिये उदरशुद्धि आवश्यक है और उदरशुद्धि के लिए आहारशुद्धि अत्यावश्यक है-इसी प्रकार आध्यात्मिक आरोग्यलाभ के लिए निश्चयशुद्धि आवश्यक है और निश्चयशुद्धि के लिये व्यवहारशुद्धि आवश्यक है, क्योंकि व्यवहारशुद्धि के बिना निश्चयशुद्धि सर्वथा असंभव
है।
सांसारिक जीवन में व्यवहारशुद्धि वाले (रुपये-पैसों के देने लेने में प्रामाणिक) के साथ ही लेनदेन का व्यवहार किया जाता है। आध्यात्मिक जीवन में भी व्यवहारशुद्ध साधक के साथ ही कृतिकर्मादि (वन्दन-पूजनादि) व्यवहार किये जाते हैं।
व्यवहारसूत्र प्रतिपादित पांच व्यवहारों से संयमी आत्माओं का व्यवहारपक्ष शुद्ध (अतिचारजन्य पाप-मल-रहित) होता है।
__ ग्रन्थ में प्रकाशित छेदसूत्रों के लिये कतिपय विचार व्यक्त किये हैं। इस लेखन में मेरे द्वारा पूर्व में सम्पादित आयारदसा, कप्पसुत्तं छेदसूत्रों में पण्डितरत्न मुनि श्री विजयमुनिजी शास्त्री के आचारदशा : एक अनुशीलन' और उपाध्याय मुनि श्री फूलचन्दजी श्रमण के 'बृहत्कल्पसूत्र की उत्थानिका' के आवश्यक लेखांशों का समावेश किया है। एतदर्थ मुनिद्वय का सधन्यवाद आभार मानता हूँ। . विस्तृत विवेचन आदि लिखने का कार्य श्री तिलोकमुनिजी म. ने किया है। अतएव पाठकगण अपनी जिज्ञासाओं के समाधान के लिये मुनिश्री से संपर्क करने की कृपा करें।
-मुनि कन्हैयालाल 'कमल'
(प्रथम संस्करण से)