Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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प्राप्त सामग्रीसे यह भी ज्ञात होता है कि इन्हें एक पुत्र भी था, जिसका नाम जिनदेवन था । उसने बेलगोलामें जिनदेवका एक मन्दिर बनवाया था । चामुण्डरायका परिवार धर्मात्मा और श्रद्धालु था। स्थितिकाल
चामुण्डरायने अपने 'त्रिष्टिलक्षणमहापुराण' में कुछ प्रमुख आचार्यों और ग्रंथकारोंका निर्देश किया है तथा कुछ संस्कृत और प्राकृतके पद्य भो उद्धृत किये हैं। गृद्धपिच्छाचार्य, सिद्धसेन, समन्तभद्र, पूज्यपाद, कवि परमेश्वर, वीरसेन, गुणभद्र, धर्मसेन, कुमारसेन, नागसेन, चन्द्रसेन, आर्यनन्दि, अजितसेन, धीनन्दि, भूतबलि, पुष्पदन्त, गुणधर, नागहस्ती, यतिवृषभ, उच्चारणाचार्य, माघनन्दि, शामकुण्ड. तेम्बलराचार्य, एलाचार्य शभनन्दि, रविनन्दि और जिनसेन आचार्योंका उल्लेख चामुण्डरायपुराणमें पाया जाता है । इन उल्लेखोंसे चामुण्डरायके समयपर प्रकाश पड़ता है | चामुण्डरायने अपने महापुराणको शक सं० ९०० (ई० सन् ९७८) में पूर्ण किया है। इन्होंने श्रवणबेलगोलामें बाहुबलि स्वामीको मूत्तिको प्रतिष्ठा ई० सन् ९८१में की है।
ब्रह्मदेवस्तम्भपर ई. सन् ९७४का एक अभिलेख पाया जाता है | गोम्मटेश्वरको मत्तिके समीप ही द्वारपालकोंको बांयी ओर प्राप्त एक लेखसे, जो ११८० ई० का है, मूत्तिके सम्बन्धमें निम्नलिखित तथ्य प्राप्त होते हैं :-- ___ भगवान बाहुबलि पुरुके पुत्र थे। उनके बड़े भाई द्वन्द्वयुद्धमें उनसे हार गये । लेकिन भगवान बाहुबलि पृथ्वीका राज्य उन्हें ही सौंपकर तपस्या करने चले गये । और उन्होंने कर्मपर विजय प्राप्त की । पुरुदेवके ज्येष्ठ पुत्र भरतने पोदनपुरमें बाहुबलिको ५२५ धनुष ऊँची एक मूत्ति बनवाई। कुछ कालोपरान्त उस स्थानमें, जहाँ बाहुबलिको मूर्ति थो, असंख्य कुक्कुट सर्प उत्पन्न हुए । इसीलिए उस मूत्तिका नाम कुक्कुटेश्वर भी पड़ा । कुछ समय बाद यह स्थान साधारण मनुष्योंके लिए अगम्य हो गया । उस मूत्तिमें अलौकिक शक्ति थी। उसके तेज:पूर्ण नस्त्रोंको जो मनुष्य देख लेता था वह अपने पूर्व जन्मकी बातें जान जाता था । जब चामुण्डरायने लोगोंसे इस जिनमत्तिके बारेमें सुना, तो उन्हें उसे देखनेको उत्कट अभिलाषा हुई । जब वे वहाँ जानेको तैयार हुए। तो उनके गुरुओंने उनसे कहा कि वह स्थान बहुत दूर और अगम्य है। इस पर चामुण्डरायने इस वर्तमान मूर्तिका निर्माण करवाया। ___ इस अभिलेखसे यह स्पष्ट है कि ई० सन् ११८० के पूर्व चामुण्डरायका १. जैनसिद्धान्तभास्कर, भाग ६, किरण ४, पु० २६१ ।
आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : २७