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और सींचा। व्यक्ति-सुधार से समाज-सुधार की राह पर अथक यात्रा की। इहलौकिक जीवन से पारलौकिक जीवन कैसे बनता और बिगड़ता है, यह समझाया। अपने समय की राजनीति में जमीन, स्त्री या वीरगति के लिए होने वाले युद्धों की प्रमुख भूमिका को पहचान कर कहा-दूसरों को नहीं, अपने को जीतो। जो संघर्षों को जन्म देता हो, वह अधर्म है। शक्ति व सामर्थ्य के गुण हैं-शान्ति और क्षमाशीलता। इन मूल्यों से उस समय के अनेक राजाओं की सोच भी बदली और कार्यनीति भी। अनेक जनपदों में गणराज्य की नींव पड़ी। राजनीति में सह-अस्तित्व और आपसी सहयोग महत्त्वपूर्ण हुए।
इच्छाओं की तानाशाही के स्थान पर ज्ञान का गणराज्य भगवान् महावीर ने अपने मन-वचन-कर्म से लेकर अपने युग तक प्रसारित किया। श्रेष्ठ जीवन-आदर्शों को धर्म बताया और ऐसा चतुर्विध-संघ बनाया, जो धर्म पर आधारित उत्कृष्ट समाज-व्यवस्था हो। ऐसे भगवान् महावीर को कोटि-कोटि वन्दन!
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