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महावीर गये जहाँ-जहाँ उसने स्वयं को उनका शिष्य प्रचारित किया वहाँ-वहाँ चोरियाँ की लोगों को सताया अपराधों का आदेशदाता महावीर को बताया लोग रोष से भरे उनके पास आये तरह-तरह से भाँति-भाँति के संत्रास पहुँचाये पर महावीर की दृष्टि थी न्यारी उन्होंने संगम को माना कर्म-निर्जरा कराने वाला उपकारी
तोसली में माजप्रासाद के ताले संगम ने तोड़ डाले ताले तोड़ने के शस्त्रों को महावीर के ध्यान-साधना-क्षेत्र में छिपाया गुप्तचरों को बताया
महावीर बना लिये गये बंदी तब भी ज्यों की त्यों रही साधना की बुलटी महावीर से पूछा गया"अपराधी कौन ?" महावीर ध्यानस्थ...मौन पॉसी का आदेश हो गया पल-भर को तो संगम सुखसागर में खो गया
'प्रकाश-पर्व : महावीर /93
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