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अपनी जीभ नवींचकर स्वयं ही प्राणों का अन्त कर लिया बेटी को दिनवा दी नाह वसुमती ने भी निश्चय कियासतीत्व-रक्षा हेतु प्राणों की भी नहीं परवाह
माँ की साठ वह चलने लगी जैसे ही डने हर रथी ने उसे रोक लिया वैसे ही वह समझा गया था सतीत्व का अर्थ उसने कहा-“बहिन ! तुम्हासा भय है व्यर्थ मानी के प्राण तो मैं नहीं लौटा सकता पर तुम्हें अब कुछ नहीं पड़ेगा सहना
मेरे घर तुम बहिन के पद पर रहना ।”
पनन्तु वसुमती यहाँ भी गई ठगी उसे देनव रथी की पत्नी भड़कने लगी कहा-“इसी क्षण बाजार जाओ इसे बेच कर धन लाओ वरना कभी मत दिनवाना सूरत हमें स्त्री की नहीं हमें तो है धन की जरूरत"
रथी उसे ले गया बाज़ार वहाँ हो नहा था स्त्रियों का व्यापार देव कर उनका क्रय-विक्रय वस्तु के समान वसुमती परेशान कौशाम्बी की गणिका महिषी को
प्रकाश-पर्व : महावीर /99
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