Book Title: Tirthankar Mahavir
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication New Delhi

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Page 129
________________ साधना-ग्रंथ और उपसर्ग का अंतिम अध्याय अनेक उपसर्ग आये महावीर की चट्टानी साधना से लहनों की तरह टकराये और लौट गये होकर हताश जारी नही जारी रही केवल ज्ञान की तलाश होने ही वाला था तलाश का पूर्णविराम महावीर आये छम्माणि ग्राम साधना में वो गये ध्यानलीन गये उजला और उजला होता गया ज्ञान तभी अपने बैलों के साथ गुजरा Jain Education International वहाँ से एक किसान वह भी महावीर को ध्यान रखने के लिये कहकर बैल छोड़ गया साधना ग्रंथ में उपसर्ग का अन्तिम अध्याय जोड़ गया लौटा तो बैल नहीं थे वहाँ पूछा - "आखिर वे गये कहाँ ?" उसने पूछा बार-बार महावीर का मौन ज्यों का त्यो बरक़नार ! उत्तर न पाकर क्रोध भड़कने लगा वह बिजलियों की तरह कड़कने लगा "मैं पूछे जा रहा हूँ तू कुछ नहीं बताता है पर मुझे तो गूंगों से भी बुलवाना आता है। बहरा है क्या कान बन्द हैं तेरे ? अभी खोलता हूँ जना हाथ देख मेरे" प्रकाश-पर्व: महावीर / 108 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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