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साधना-ग्रंथ
और उपसर्ग का अंतिम अध्याय
अनेक उपसर्ग आये
महावीर की चट्टानी साधना से
लहनों की तरह
टकराये और लौट गये होकर हताश
जारी नही
जारी रही केवल ज्ञान की तलाश
होने ही वाला था
तलाश का पूर्णविराम
महावीर आये छम्माणि ग्राम
साधना में वो गये
ध्यानलीन
गये
उजला
और उजला होता गया ज्ञान
तभी अपने बैलों के साथ गुजरा
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वहाँ से एक किसान
वह भी
महावीर को ध्यान रखने के लिये कहकर
बैल छोड़ गया
साधना ग्रंथ में
उपसर्ग का अन्तिम अध्याय जोड़ गया
लौटा तो बैल नहीं थे वहाँ
पूछा - "आखिर वे गये कहाँ ?"
उसने पूछा बार-बार
महावीर का मौन
ज्यों का त्यो बरक़नार !
उत्तर न पाकर क्रोध भड़कने लगा
वह बिजलियों की तरह कड़कने लगा
"मैं पूछे जा रहा हूँ
तू कुछ नहीं बताता है
पर मुझे तो गूंगों से भी बुलवाना आता है।
बहरा है क्या
कान बन्द हैं तेरे ?
अभी खोलता हूँ जना हाथ देख मेरे"
प्रकाश-पर्व: महावीर / 108
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